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दिल्ली 20/09/1979

 
कैबरे: अश्लीलता का संकट दूर -बृजेन्द्र रेही
  
क्या कैबरे नग्नता और अश्लीलता की परिधि में आता है? यह प्रश्न एक अर्से से विवाद का विषय रहा है।मगर पिछ्ले दिनों दिल्ली उच्चन्यायालय ने अपने एक निर्णय में कैबरे को नग्न और अश्लील न मानते हुए कहा है कि कैबरे देखने जानेवाले लोग बड़ी रकमें खर्च करके और अग्रिम सीटें बुक करा कर अपने जैसे दर्शकों के साथ मनोरंजन करते हेँ।और वे लोग जो कैबरे को अश्लील मानकर इसे नहीं देखते उनकी मान्यता से कैबरे डांसर को अभियुक्त नहीं बनाया जा सकता।
 
       किस्सा यूँ है कि दिल्ली के एक रेस्त्रॉ में,जहाँ कि कैबरे होता है 20 सितम्बर 1979 की शाम पुलिस ने  छापा मारा और चार कैबरे गर्ल तथा रेस्तरां मलिक के विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया।इस सम्बंध मेँ यूँ तो अपील एक कैबरे डांसर की ओर से की गई थी मगर पर्दे के पीछे उस रेस्त्रॉ का मनज्मेंट पैसे खर्च कर रहा था। रेस्त्रॉ के मैनेजर से जब यह पूछा गया कि जिस समय पुलिस ने छापा मारा,उस रेस्त्रॉ मेँ 4 लड़कियाँ कैबरे पेश कर रही थीं।उन्होँने 'ब्रा' और ' अंडरवियर' ही पहन रखा था।वे शरीर के विभिन्न अंगों को लहरा-लहरा कर ग्राहकों का मनोरंजन कर रही थीं।
 
पहले पहल यह मामला मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हुआ,जहाँ से कैबरे नर्तकियों को सम्मन भिजवाकर 20 अप्रैल '80  को अदालत में हाज़िर होने का आदेश दिया गया। इस आदेश दिया गया।इस आदेश के विरूद्ध कैबरे नर्तकी साधना ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका पेश कर निचली अदालत की कार्यवाही को चुनौती की।उसी याचिका पर  न्यायमूर्ति मांगीलाल जैन ने 11 नवंबर '80 को अपना फैसला पूर्व में विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों के संदर्भों मे अपनी राय जोडते हुए दिया।  
    
अदालत मेँ जो कागज़ात पेश किए गए उसके अनुसार कैबरे नर्तकी साधना (असली नाम नहीं)किन्ही सुनील दत्त की लड़की बताई जाती है।वह स्थायी रूप से बंगलोर की रहनेवाली है।
 
दिल्ली के इस रेस्त्रॉ मेँ वह पिछले कई दिनों से नाच रही ही थी। "कैबरे-गर्ल' की हालत आमतौर पर बड़ी दयनीय है।कहते हें जिन होटलों में वे नाच करती हें,उनके मालिकों और खास ग्राहकों की 'हवश' की भी कभी कभार शिकार होना पड़ता है।दिल्ली में 8 ऐसे होटल् तथा रेस्त्रॉ हेँ,जिनमें कैबरे होते हें।
 
कैबरे करनेवाली‐ लडकियां समानत्या: एक जगह जमकर नहीं रहती।वे देश के नगरों महानगरोँ के होटलों मेँ ' 'कॉन्ट्रैक्ट' के अनुसार नाचती रहती है।इतना ही नहीं अलग अलग स्थानों पर इनका अलग अलग नाम होता है।सबसे अधिक कैबरे डांसर बम्बई में हें।इस पेशे में अपनानेवाली लड़कियाँ एक निश्चित उम्र के बाद यातना पूर्ण और दयनीय ज़िंदगी जीते हुए भी देखी गयी है।
 
जो भी हो दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले से कैबरे करनेवाली लडकियों और रेस्तरां तथा होटल चलाने वालों  का हौसला बढा है।एक बार पहले भी बम्बई
 हाई कोर्ट ने भी यह फैसला दिया था कि कैबरे जुर्म नहीं है।इस धंधे से मनोरंजन-कर के रूप में सरकार करोड़ों रुपये कमाती है।ऐसे में होटल मालिकों का कहना है कि अगर सरकार चाह्ती इसे बन्द कराना तो पहले ही करा देती।अब जब हम भी लाभ कमाते हें तो दर्शकों को 'खुश' रखना हमारा फर्ज है।
 
न्यायमुर्ति मांगीलाल जैन ने 11 नवंबर '80 को जो फैसला सुनाया उसमें पूर्व  में निर्णीत मुकदमों की भी चर्चा थी है।एक बहुचर्चित मामला 1975 की है।महाराष्ट्र राज्य बनाम जॉयसजी उर्फ टेमिको में बॉम्बे हाईकोर्ट ने निर्णय देते हुए कहा।जब एक 18 वर्ष से अधिक आयु का ग्राहक टिकट खरीदकर होटल में
कैबरे देखने जाता है,वह अनुचित नहीं कहा,वह अनुचित नहीं कहा जा सकता है।उर्वसी तथा सप्रा बनाम महेश बाबूवाले मामले में भी अश्लीलता को आधार बनाया गया है।अश्लीलता का मामला पुस्तक़ों के सन्दर्भ में तो लागू हो सकता है।पुस्तकेँ किसी के भी हाथ में पड़ सकती हेंँ।किन्तु कैबरे देखने के लिए वे ही लोग महंगे होटलों में जाते हें,जो पैसा खर्च कर सकते हें।धारा 294 के अन्तर्गत अपराध उसे माना है,जोकि किसी भी तरह से किसी वर्ग या व्यक्ति को हानि पहुंचाती हो। इसी प्रकार एक अन्य मामले में महाराष्ट्र हाईकोर्ट का यह कहना है कि अदालत अश्लीलता ने मामलों पर निर्णय के समय पूर्ण सन्दर्भ देखे क्योंकि अलग अलग देशों में अश्लीलता की अलग अलग मान्यताएं हें। पर समकालीन समाज की नैतिक़ धारणाओं पर निर्भर करती है।
 
इसलिए अपीलार्थी की यह दलील न्यायसंगत लगती है,क्योंकि मैने एक अन्य निर्णित मामले में पाया है कि समकालीन भारतीय समाज की मान्यताएं भी तेज़ी से बदल रही हें।वयस्क और किशोरों के लिए बड़ी संख्या में उत्कृष्ट साहित्य,उप्लब्ध हैं जिनमें सैक्स,प्रेम,और कला के क्षेत्र मे  भी ये बाते हें,जिन्हें किशोर भी पहले देखते हें।अब कई बातें ऐसी हें जो आज से एक चौथाई शती पहले अनुचित मानी जाती थी।
 
जॉयसजी सप्रावाले मामले में जो बातें सामने आयी हें,वे दिल्ली के रेस्तराँ से कहीं आगे है।वहाँ नर्तकी सिगरेट पीती हुई हाल में आती है और किसी दर्शक के पीछे खड़ी हो जाती है।वह कुछ देर नाचती है और ग्राहकों को कपड़े उतारने के लिए बुलाती है।जिस्म पर जब "पैंटीज़", और "ब्रा" रह जाता है तब वह मेजों के चारों और चक्कर लगाती है। ग्राहकों के जिस्म से अपने नंगे जिस्म को रगड़ती है।रति-क्रीड़ा की सारी हरकतें वह कर जाती है।जब मुंबई के उक्त मामले में भी बुद्धिमान न्यायाधीश ने यह कहा कि धारा 294 के अंतर्गत कुछ नहीं किया जा सकता तब दिल्ली का यह मामला उससे अधिक कहाँ है? इसलिए यहां के मामले को अश्लील नहीं माना जा सकता।यदि सरकार कैमरे रोकना चाह्ती है तो उसे अलग कानून बनाना चाहिए।
 
अन्ततः दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में उपरोक्त सभी मामलों की चर्चा की है तथा ज़ोर देकर पुन :कहा कि दिल्ली के उस रेस्तरां में जो कुछ हो रहा था वह  बम्बई के रेस्तरां से घाटिया नहीं था।अगर सरकार 
कैबरे को रोकना चाहती है तो उसके लिए अलग से कानून बनाना होगा।धारा 294 के तहत इस मामले में कुछ अधिक नहीं किया सकता।
 
बृजेन्द्र रही


 02-Aug-2024 05:44 pmComment



Guerilla warfare-with a pencil!-


Guerilla warfare-with a pencil!- 
 
Sudhir Tailang 
 
The pencil that launched a million smiles.Most of us just can't get enough of those magical sketches which inspire instant joy and delight with their telling commentary delivered in a few amazing strokes.But Padamshri Sudhir Tailang is no ordinary scribbler.He is one of those unique,talented artist who can journey into the heart of a politician with nothing more than a pencil and a blank sheet of paper! Assistant editor Devesh Charan tries to sketch out the cartoonist who has redefined the art of cartoon making.
 
One of the foremost political satirist of India,Sudhir Tailangji's cartoons have a wonderful combination of the interplay of words and straight forward lines hones to perfection.Completely self-taught,his flair for the genre is evident in all his works,spanning well over two decades.A talented professional cartoonist,Sudhir has been drawing cartoons since the 70s.Asked about his cartooning career,he said,"cartooning is not run of the mill kind of profession.It requires lot of hardwork and patience.After years of the hard work cartoonist gets the recognition,"Born on 26th Feb 1960,Sudhir was brought up in a rural hàmlet of Rajasthan.He has done his primary schooling from Maharaja Sadul School,Bikaner.Recalling his school days he said,"It was full of fun and as I lived in a culturally and traditionally rich area.I was inclined to creative things from very early age.I recall the days of 1971 war with Pakistan.It was a picnic time for us as we were playing the game of hide and 
Seek in I and Z shaped trenches made by Indian army." His first drawing was published when he was in school.And,for a small town boy it was a great achievement and as it gave him a great sense of accomplishment.After passing out from school he went to Poddar school in Jaipur and finished his graduation in biology from Jaipur University.He wanted to become a doctor but destiny chose a different destination for him.During his graduation he found himself inclined towards creative things.But he did not know where to go.About this period,he said,that he might have tried his hands to film art anything which seemed creative but still at that point of time he did not have clue about his cartooning skills.After finishing his M.A.in English he joined .The Times of India group in 1982 and worked with The Illustrated Weekly of India in Bombay.Then he shifted to Delhi and joined The Hindustan Times in 1989.
 
   So from 1970 to 2004,it was a long journey of a cartoonist who pursued his interest with relentless effort and determination.He has sketched almost nine Prime minister's of India from mrs Indir Gandhi to Atal Bihari Vajpayee.According to him Rajiv Gandhi was the greatest delight to draw and initially Mr Vajpayee was very difficult to draw.Bùt his Hero No.1 is Mr P.V.Narsimha Rao who while being a Prime Minister was favourite to all the cartoonists.Mr.Rao used to hide his fingers and no one could decipher what was under the wrap.His hero No.2 is Mr.L.K.Advani who remains at the center stage despite being not the PM because whether he is in role or opposition, he remains in the news.Apart from his heroes he saw Mr Chandrasekhar as an angry man.But for the first time,he smiled during his tenure as a PM.Deve Gowda was a sleeping beauty of Indian politics for him.The tenure of Mr. V.P.Singh was a great time for cartoonist with the special kind of 'VP Topi'  And his character evolved with the time.About cartooning he said,"Cartoon is unlike other kind of drawing,it involves capturing the essence of the personality.External features are not important in the cartoon -inner persona is more important means what you ought to look like?Cartoon is a graphic shortland." He is great political cartoonist but he has not any personal liking or disliking for any politicians.All the politicians are characters for him.He has drawn almost thousand of cartoons but one cartoon he remembers the most is "Lord Ganesha drinking milk directly from Mother dairy rank,".He got all sorts of calls from different sections of the people.He recalls one such call,"One lady at 2a.m. called me and said that I shall die in 3 days and she repeated her call for continuous 3days.",Sudhirji's greatest reward is admiration of readers.
      Sudhir Tailang-a man of few words has a special interest for cricket.Since early school days he used to visit cinema hall to see the 15 minutes of cricket clipping in the news reel because at that time there was no TV.While recalling about the interest in cricket he said,"All the statistics of the cricket used to be in my mouth tip  and I was an off spinner with good at batting." Among places he used to visit Jaisalmer which reminds him of Arabian Nights.He wants to visit Paris,Berlin,Switzerland.Sudhir is not a food-freak.Just he eats to survive.Barishta is his favourite restaurant and in Delhi he loves.India Habitat centŕe and Pandara park.Maurya and Taj is his favourite hangout places.His all time favourite actors are Amitabh bachchan and Gurudutt but he loves to watch Shahrukh khan and Amir Khan.Among actresses he admires the personality of Sushmita sen.He adores the beauty of Aishwariya Rai and among old timers: he loves to watch Madhubala and Wahida Rahman Charlie Chaplin and Walt Disney his favourite characters.
 
Sudhir got happily married with Vibha in 1986-the day Mr Mikhail Gorbachov visited India.Vibha is also in the media profession and now a days she works as a freelancer. This couple is blessed with a daughter who studies in XIth std,in Sardar Patel School.Among four siblings (two brothers and two sisters) Rajesh Tailang is an NSD graduate and presently working with Govind Nihlani in a film 'Dev" playing a police officer's role.His grand father,Pandit koti Maharaj,was a great classical music exponent of his time and his two uncles:Pandit Jashkaran Goswami and Pandit Girdhar Goswami are exponents of Sitar.His cousins are classical musicians.
     Sudhir Tailang the celebrated cartoonist of the Hindustan Times newspaper hit upon with a UFO ìn the mid 70's.Recalling the view of the UFO he said,"I have seen a UFO in the mid 70's.Recalling the view of the UFO he said "I have seen a UFO in the mid 70's,not just me,but my parents,and a whole lot of other people.
 
It was in Bikaner,Rajasthan.We were on our terrace as many others,early morning - having our tea.So were many others in the adjoining houses.It was summer time.From the western horizon a very huge object,a circular entity copper brown in colour having Geometric patterns-at the bottom appeared.At the centre,there was a round hole-and a long sterm of fire was coming out from it.The object was slightly tilted o  its axis.It was a sepectacular,breathtaking sight.Wow!"
 
He added that the craft was seen by many people in the area and aroused a reasonable feeling of excitement and enthusiasm in the town.The craft did not make any kind of sound,added Mr Tailang.
 
Sudhir does not want to retire.As he constantly wants to evolve as a cartoonist and a human being.He is modest enough 
 in accepting that he does not know much about himself."It is very difficult for me to drew a cartoon of myself."
 
Sudhirji's publication includes "World of Sudhir Tailang","Here and Now,.
 
He has tried to explore the dimension of films and television to extend the frontiers of cartooning in his short animation films and series of films on the legendary cartoonists of India--50 years of Lampoonin.He has developed a CD-Rom on the art of cartooning, ---world of cartoons.Now he wants to make a full length animation film to expand his horizon.He also wants to explore his horizon his talent in documentary and film making.
 
Apart from beīng a professional cartoonist he is a social activist and wants to contribute to society.In the past, he formed a voluntary group to raise funds for the Bhopal gas victims by drawing on the spot caricatures of people at different localities of Delhi.He sold his sketches for Rajasthan drought and raised rs 1lakh for the drought affected people.He has also helped in raising funds for kargil Soldiers.
 
Recently,he got Padamshree award for the contribution in the field of cartooning by Prime Minister Vajpayee.Almost àfter 30 years a cartoonist have got the recognition in the form of Padamshreè award.Before him,the only cartoonist to get the award was R.k.laxman.He want to dedicate this award to Mrs Shobhna Bhartiya; Hindustan Times to Nandita Jain who has helped him in the beginning of his career.He said,"I dedicate this award to my million of readers,parents,grandparents and to Hindustan Times which introduced the art of cartooning in newspaper industry".His fans hope that one day we would be successful in expressing his own personality through a legendary cartoon picture.


 28-Jul-2024 08:34 pmComment



Aatankvaad ki mansha


आतंकवाद की मंशा की समझ तभी हो सकती है जब हम उसकी मानसिकता को समझें!!

 

साल 2011,तारीख

13 जुलाई,मुंबई में तीन सीरियल बॉम्ब ब्लास्ट हुई 18:54 और 19:06 IST 

एक रॉयल ओपेरा हाउस,दूसरा ज़ावेरी बाज़ार और तीसरा दादर वेस्ट का इलाका,जिसमें 26 लोग मारे गए और 130 घायल हुए ।तीन दिन हुए मैने टी वी पर यह समाचार देखा।इस ब्लास्ट के सन्दर्भ में श्री दिग्विजय सिंहजी व श्री शाहनवाज़,श्री एम .ए नक्वीजी के बयान सुने।काफी गम्भीर मानसिकता से बयान दिया गया नहीं लगा।सम्भवत: पक्ष व प्रतिपक्ष ने अपना दायित्व वक्तव्य देकर ही निभा दिया।विश्वास था जल्द ही इस के पीछे के लोगों का पर्दाफाश होगा और उन्हें सज़ा भी मिलेगी।आखिर 1990 से 2022 तक़ अगर देखें तो काफी अधिक बार मुंबई आतंकवादी ब्लास्ट जैसी वारदातों से दहला है।25/अगस्त 2003 मुंबई सीरियल ब्लास्ट,2005 दिल्ली बॉम्ब ब्लास्ट और 2006/11जुलाई को मुंबई लोकल ट्रैन में हुई 7बॉम्ब ब्लास्ट के बाद,समझौता एक्सप्रेस में,8सितम्बर 2006 को मालेगाँव,नासिक में,2006 वाराणसी में,18 फ़रवरी 2007 को पानीपत,2008/26/जुलाई को अहमदाबाद गुजरात में 17 ब्लास्ट हुई थी।13 सितम्बर 2008 को दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट हुई,26 नवंबर 2008 को मुंबई ताजमान सिंह हॉटल में आतंकवादी हमला हुआ था।2008 में डेनिश एंबस्सि में ब्लास्ट,बंगलोर में 25जुलाई 2008 को सीरियल,जयपुर मेँ 13मई 2008 को हुए सीरियल ब्लास्ट,जर्मन बेकरी ब्लास्ट पुणे में 13फरवरी को और फिर 17 सितंबर 2011 को आगरा में ब्लास्ट,7 सितम्बर 2011 को दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट यह तो संक्षिप्त विवरण है आतंकवादी वारदातों का....जिसे उसका टाईमलाईन कहते हें।पहले की भान्ति इस बार भी जल्दी ही केस सुलझा लिया गया।वारदात मेँ देसी आतंकवादियों के मॉडयुल का खुलासा हुआ।

 

इंडियन मुजाहिद्दीन एक भारतीये मूल के आतंकवादी संगठन है,उसका नाम आया और उनकी मदद करनेवाले पाकिस्तानी नागरिकों का भी।

 

मुंबई पुलिस व राज्य और केंद्र की अथक परिश्रम से होम ग्रोन टेरर की बात तो साबित हुई उसके पीछे के विदेशी चेहरों को भी बेनकाब किया गया।CCTV में देखकर पकडे गए दो आतंकवादी और उनके साथी की तार IM के मास्टरमाइंड यासीन भट्कल से जुड़े थे और गोवा एयरपोर्ट पर पकडे गए। दुबई फ्लाइट के इन्तज़ार में खड़े अब्दुल मतिंन फक्की की गिरफ्तारी से ATS मुंबई को सबूत मिला की वो हमारी आतंकवादी संगठनो को हवाला   के माध्यम से धन पहुंचाता रहा है,खासकर IM के सह संस्थापक यासीन भट्कल को।

 

आज मेँ अपने विचारों से पहले उस व्यक्ति के इस्लाम और जिहाद पर विचार लिखूंगी जिनके विचार मुझे काफी प्रभावित करते रहे हें,हालांकि उनको लिखें और अब गुज़रे हुए भी सालों हो गए हें।जिहाद का सामान्य अर्थ धर्मयुध है,किन्तु आरम्भ में,यह शब्द इतना भयानक अर्थ नहीं देता था,जिहाद शब्द जहाद धातु से निकला है,जिसका अर्थ ताक़त,शक्ति या योग्यता होता है।क्लेन नामक एक विद्वान ने जिहाद का अर्थ संघर्ष किया है और इस संघर्ष के उसने 3 क्षेत्र माने हें।

1)- दृश्य शत्रु के विरुद्ध संघर्ष,

2)-अदृश्य शत्रु के विरूद्घ संघर्ष,और

3)- इंद्रियों के विरुद्ध संघर्ष 

 

साधरणतय:,विदुआनों का यह मत है कि इस्लाम के प्रचार के लिए जो लड़ाईयां लड़ी गयीं,उन्हें पवित्र विशेषण देने के लिये ही इस शब्द का प्रचलन किया गया।किन्तु,मोह्म्मद अली (रिलीजन औफ़ इस्लाम के लेखक) का मत है कि इस शब्द का इस्लाम के प्रचार के लिए युध्द करना नहीं है।मक्का में उतरनेवाले क़ुरान में जहाँ जहाँ यह शब्द आया है,वहां इसका अर्थ परिश्रम,उद्योग या सामान्य      संघर्ष ही है लड़ने की इजाज़त नबी ने तब दी,जब वे भाग कर मदीने पहुंचे

या जब वे मक्का छोड़कर भागने की तैयारियों में मदीने में आत्मरक्षा के लिए तलवार उठाना आवश्यक हो गया।तभी लड़ाईयों जिहाद के नाम से चलने लगीं,किन्तु,यहां भी जिहाद का व्यापक अर्थ है और उसके भीतर वाणी और तलवार दोनों के लिए स्थान है।

 

हदीस हज की भी गिनती जिहाद में करता है और कहता है,",नबी ने कहा है कि सबसे अच्छा जिहाद हज में जाना है,'किन्तु पीछे चलकर काज़ियों ने (न्यायपतियों)ने जिहाद का अर्थ युध्द कर दिया,मौहम्मद अली के मतानुसार,विधर्मीयों को तलवार के ज़ोर से इस्लाम मेँ लाने की शिक्षा क़ुरान ने नहीं दी,ना ये बात नबी के ही दिमाग मेँ थीं।लड़ने की इजाजत नबी वहीँ देते थे,जहां आत्मरक्षा का प्रश्न होता था।किन्तु,जब मुल्ला और क़ाज़ी सर्वेसर्वा बन बैठे तब उन्होँने सारी दुनिया को दो हिस्सों में बाँट दिया।जिस हिस्से में मुसलमान सुखी और स्वतंत्र थे,यानी जिस हिस्से पर उनकी हुकुमत थी उसे तो उन्होने दारूल-इस्लाम (शांति का देश)कहा,इसके विपरीत,धरती के जिस हिस्से में पर उनका अधिपत्य नहीं था,उसे दारूल-हरब (युध्द-स्थल) कहकर उन्होँने मुसलमानोँ को उत्तेजित किया कि ऐसे देशों को जीत कर वहां इस्लाम का झण्डा गाड़ना चाहिए।

 

और ऐसा हुआ भी,दारूल हरब में झण्डा गाड़ना जिहदियों का परम कर्तव्य है।किन्तु किसी लेखक ने ये भी लिखा है कि विश्व भर मेँ इस्लामसाम्राज्य स्थापित करने की कल्पना मुहम्मद साहब के मन में भी जगी थी।वे अक्सर कहते थे,",तम्हें मानना चाहिए की हर एक मुस्लिम हर दुसरे मुस्लिम का अपना भाई है।तुम सबके सब आपस में समान हो।"

 

"अपने जीवन के अन्त तक़ आते आते,उनकी धारणा यह हो गयी थी कि सारी पृथ्वी को एक धर्म के अधीन होना चाहिए।सारे संसार के लिए एक नबी और एक ही धर्म हो,यह भाव उनमें जग चुका था।"

 

इस्लाम का आरम्भ धर्म से हुआ था,किन्तु बढ़ कर वह राज्य और सेना का संगठन भी बन गया।इस प्रकार,इस्लामी राज्य,इस्लामी सँस्कृति और इस्लामी राष्ट्र सबके साथ धर्म का जोश लिपट गया तो धर्म के अवशेष से ही राज्य की स्थापना हुई थी,पीछे,राज्य की शक्ति-वृद्घि से धर्म का भी प्रताप बढ्ने लगा।इसाई देशों में पादरी अलग और राजा अलग थे।भारतवर्ष में पुरोहित अलग और राजा अलग थे।किन्तु इस्लामी देशों का धर्म- गुरु और राजा,दोनो एक ही व्यक्ति होने लगा।इस प्रकार,धर्म से तलवार की तेज़ी बढी और धर्म का बल बढ़ने लगा।

 

इस्लाम के देखा-देखी भारत में सिख-सम्प्रदाय का संगठन भी इसी सिध्दांत पर किया गया था।स्वर्गीय श्री विवेकानन्दजी ने रामकृष्ण परमहंस के साधनापूर्वक धर्म की जो अनुभूतियाँ थीं,उनसे सिध्दांत निकाले।अपने छात्र जीवन में वे उन हिन्दू युवाओं के साथी थे,जो यूरोप के उदार एवं विवेकशील चिंतन की विचारधारा पर अनुरक़्त थे तथा जो ईश्वरीये सत्ता एवं धर्म को शंका से देखते थे।विवेकानंद का आदर्श उस समय यूरोप था एवं यूरोपिया उद्दंता को वे पुरुष का सबसे तेजस्वी लक्षण मानते थे।

 

स्वामीजी हिन्दुत्व की शुद्धि के लिए उठे थे तथा उनका प्रधान क्षेत्र धर्म था।किन्तु धर्म और सँस्कृति,ये परस्पर एक दूसरे का स्पर्श करते चलते हें।भारतवर्ष में राष्ट्रिए पतन के कई कारण आर्थिक और राजनीतिक थे।किन्तु,बहुत से कारण ऐसे भी थे,जिनके सम्बंध धर्म से था।अतएव,उन्होनें धर्म का परिष्कार भारतीय समाज की आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखकर करना प्रारंभ किया है और इस प्रक्रिया में उन्होंनेे कड़ी से कड़ी बातें भी निर्भीकता से कहीं।उनके समय में ही प्रत्यक्ष ही गया      था कि भारत यूरोप के समान राजनीतिक शक्ति होना चाहता है।इसकी उपयोगिता स्वीकार करते हुए भी उन्होनें यह चेतावनी दी थी कि,"भारतवर्ष की रीढ़ की हड्डी धर्म है,"। वह दिन बुरा होगा,जब यह देश अपनी अध्यात्मिक रीढ़ को हटा कर उसकी जगह पर एक राजनैतिक रीढ़ बैठा लगा।

 

हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक और विश्व प्रचारक होने पर भी उनमें इस्लाम के प्रति कोई द्वेष नहीं था।उनके गुरु परमहंस ने तो 6 महिनों तक़,विधिवत मुसलमान हो कर इस्लाम की साधना की थी।इस संस्कार के कारण इस्लाम के प्रति उनका दृष्टिकोण यथेष्ठ रूप से उदार था।उन्होनें कहा है कि,"यह तो कर्म का फल ही था कि भारत को दूसरी जातियों ने गुलाम बनाया।किन्तु भारत ने भी अपने विजेताओं में से प्रत्येक पर संस्कृतिक विजय प्राप्त की। मुसलमान इस प्रक्रिया के अपवाद नहीं हें। शिक्षित मुसलमानों,प्राय:,सूफी  होते हैं जिनके विश्वास हिन्दुओं के विश्वास से भिन्न नहीं  होते। इस्लामी सँस्कृति के भीतर भी हिन्दू-विचार प्रविष्ट हो गए हैं।विख्यात मुगल सम्राट अकबर हिन्दुत्व के काफी समीप था।यही नहीं, प्रत्युत,काल-कर्म में इंग्लैंड पर भी भारत का प्रभाव बढ़ेगा।" 

 

सिस्टर निवेदिता की पुस्तक़ "मई मास्टर",में उल्लेख है कि एक बार स्वामीजी 3-4 दिनों के लिए समाधि से लौट कर उनसे बोले,"मेरे मन में यह सोच कर  बराबर क्षोभ उठता था कि मुसलमानों ने हिन्दुओं के मन्दिरों को क्यों तोड़ा, उनके देवी देवताओं की मूर्तियों को क्यों भ्रष्ट किया? किन्तु,आज माता काली ने मेरे को आश्वश्त कर दिया।उन्होनें मुझसे कहा,"अपनी मूर्तियों का मैं खयाल या तोड़ दूँ या तुड़वा दूँ,यह मेरी इच्छा है।इन बातों पर सोच-सोच कर तू क्यों दुखी होता है?

 

इस्लाम और हिन्दुत्व के मिलन का मह्त्व उन्होनें एक और उच्च स्तर पर बतलाया है।समानत्या:,वेदांत ज्ञान का विषय समझा जाता है,जिस में त्याग और वैराग्य की बातें अनिवार्य रूप से आ जाती हें,किन्तु इस्लाम,मुख्यतः भक्ति का मार्ग है तथा हज़रत मुहम्मद का पंथ देह-धन दान,सन्यास और वैराग्य को महत्व नहीं देता,किन्तु, विवेकानंद की व्याख्या का वेदांत "निवृति",से मुक्त शुद्ध "प्रवृति",का मार्ग   एवं सात्विक दृष्टि से इस्लाम स्वामीजी की कल्पना थी कि इस्लाम की व्यवहारिकता को आत्मसात किए बिना वेदांत के सिध्दांत जनता के लिए  उपयोगी नहीं हो सकते।सन 1898 में उन्होँने एक चिट्ठी में लिखा था,"हमारी जन्मभूमि का कल्याण तो इसमें है कि  उसके 2 धर्म,हिन्दुत्व और इस्लाम,मिलकर एक हो जाएँ।

 

"वेदान्ती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर के संयोग से जो धर्म खड़ा होगा,वही भारत की आशा है।"

 

विश्व-धर्म,विश्व-बंधुत्व और विश्ववादब की भावना का आरम्भ इसी दौर में हुआ।स्वामी विवेकानन्दजी ने हिन्दुत्व और विश्ववाद की भावना का आरम्भ इसी दौर में अधिक होता देखा।स्वामी विवेकानंदजी ने हिन्दुत्व के सारभौम्ं रूप का और भी व्यापक विस्तार किया ताकि हिन्दुत्व और इस्लाम,मिलकर एक हो जायँ।

 

*आतंकवाद के सन्दर्भ में धर्म व उसके वैश्विक प्रचार और जमीनी क्षेत्रफल पर भी अधिकार कर शासन व्यवस्था अपनी मुट्ठी मैं करने की मानसिकता ने,"खूनी,यानी सशस्त्र युद्धरुपी जिहाद," को बढ़ावा दिया।ये मेरे मौलिक विचार हें।..(.कलमश्री विभा तैलंग)

 

स्वामी विवेकानंदजी ने धर्म को व्यक्ति और समाज,दोनो के लिए उपयोगी माना है।धर्म के विरुद्ध संसार मेँ जो भयानक प्रतिक्रिया उठी है,उसका निदान संसार में धर्मों पर एकता कैसे लाई जाए,इस का समाधान नहीं मिलता।प्राचीन काल मेंँ अनेक लोग यह मानते थे कि जो धर्म सबसे अच्छा हो,संसार भर के मनुष्यों 

को उसी धर्म में दीक्षित हो जाने चाहिए।इसका परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक धर्म के लोग आपने ही धर्म का व्यापक प्रचार करने लगे,जिनमें से इस्लाम और इसाईयत के प्रचारकों ने सबसे अधिक उत्साह दिखलाया,शिकागो में जो विश्व-धर्म-सम्मेलन हुआ था, उसका भी एक आशय यह था कि संसार में सर्वोत्तम धर्म कौन-सा है,इसका निर्णय् 

कर लिया जाए।किन्तु,उस सम्मलेन में विवेकानंदजी के विचारों से सभी चमित्कृत हो गए।

 

उन्होनें कहा कि,"आत्मा की भाषा एक है,किन्तु, जातियों की भाषाएं अनेक होती हें।धर्म आत्मा की वाणी है।वही वाणी अनेक जातियों की विविधता भाषणों तथा रीति-रिवाजो में अभिव्यक़्त हो रही है।"

 

कुछ लोग धर्म को अफीम की नशा ली तरह मानते हें और धार्मिक कट्टरता और उससे उत्पन्न रुढ़ियों,रहस्यवाद की परतें-जिसका दुरुपयोग अन्धविश्वास को फैलाने में किया जाता है।हमारे और कई दूसरे देशों का  रक़्त रंजीत विभाजन और मौजूदा दौर   में आतंकवाद इसी की उपज है।यह मौलिक विचार है।स्वामीविवेकानन्दजी ने धर्म को व्यक्ति और समाज दोनो के लिए उपयोगी माना है।धर्म के विरूद्ध संसार में जो भयानक प्रतिक्रिया उठी हैं,उसका निदान वह यह कह कर  देते थे,कि दोष धर्म का नहीं,धर्म के गलत प्रयोगक है,ठीक वैसे ही,जैसे विज्ञान से उठनेवाली भीषणताओं का दायित्व विज्ञान पर नहीं हो कर उन लोगों पर है,जो विज्ञान का गलत उपयोग करते हें।स्वामीजी का विचार था कि,'धर्म को समझकर जिस तरह से लागू किया जाना चाहिए था,उस तरह से वह लागू किया ही नहीं गया है।"हिन्दू धर्म अपनी सारी धार्मिक योजनाओं को कार्य के रूप में परिणत करने में असफल रहे हें। फिर भी अगर कभी,"विश्व-धर्म-जैसा धर्म उत्पन्न होनेवाला है,तो वह हिन्दुत्व के ही समान होगा जो देश और काल में कहीं भी सीमित या अबध्या नहीं होगा ।जो,परमात्मा के समान ही,अनंत और निर्बाध होगा तथा जिसके सूर्य का प्रकाश कृष्णा और उनके अनुयायियों पर तथा संतो और अपराधियों पर एक  समान चमकाएगा। यह धर्म ना तो ब्राह्मण होगा,ना बुद्ध,ना इसाई, ना मुसलमानी,प्रत्युत,वह इन सब के योग और सामन्जस्य से उत्पन्न होगा।"

 

राजा राममोहन राय की अनुभूतियों में विश्व धर्म,विश्वाद गुन्थी हुई थी।उन्होंने हिन्दू-धर्म की जो व्याख्या प्रस्तुत की थी,वह विश्व - धर्म की भूमिका से तनिक कम नहीं है।मुक्त चिन्तन,व्यक्तिक स्वतंत्रता और प्रत्येक प्रकार  का विश्वास रख कर भी धर्म च्युत नहीं होने की योग्यता,हिन्दू धर्म के पुराने लक्षण रहे हैं।हिन्दू नास्तिक रहा है,और आस्तिक भी,साकारवादी भी और निराकारवादी भी,उसने महावीर का भी आदर किया और बुद्ध का भी।उसने वेदों को अपोरूष्य भीं माने है और पुरुषय भी।विश्वासों में यह       जो प्रचंड भिन्नता है,उसे हिन्दू का हिन्दुत्व दूषित नहीं होता।हिन्दू जन्म से ही उदार होता है एवं "किसी एक विचार पर सभी को लाठी से हांक कर पहुंचाने में वह विश्वास नहीं रखता।"

जब थ्योसोफीस्ट लोग हिन्दुत्व का प्रचार करने लगे,तब हिन्दुत्व ला सार्वभौम कुछ और विकसित हुआ और रामकृष्ण परमहंस ने तो बारी बारी से मुसलमानों और क्रिसतान  हो कर इस सत्य पर अपनी अनुभूति की मुहर लगा दी कि संसार के सभी धर्म एक हें,उनके बीच किसी प्रकार का भेदभाव मानना नितांत अज्ञानता है।

 

निवृतिवाद के बाद प्रवृतिवाद उभर कर 19वीं सदी में आया पर 20वीं सदी 20वीं सदी में पूर्ण रूप से निखरा।इस दौरान उसमें काफी विकृतियां भी आयी।इस सदी के दौरान,",राष्ट्रवाद की भी आन्धी आयी और 20वीं सदी के अन्तिम दशक में भूगोलीकरण की लहरें भी आ गयीं।साथ में क्या खूबियाँ और दोष लायें।यह चर्चा का विषय है।उम्मीद नहीं यकीन है कि इस नई सदी,यानी 21वीं सदी में हम,",, निवृति/प्रवृति/राष्ट्रवाद/भूगोलिकरण,....इन सबका मिश्रण लेकिन परिष्कृत,संतुलित,संयमित रूप में "विश्ववाद",उभर कर आयेगा और निख्ररेगा  भी।अब हम सब पर निर्भर करता है कि हम किस तरह से स्वीकारते आतंकवाद का भस्मासुर इसी का एक सूत्र है जो इस रूप में खुद विश्व पर काबिज करना चाहता है,जोकि दूरदृष्टि से देखें तो लम्बे समय तक़ सम्भव नहीं होगा।अंत:मुस्लिम भाई "इस्लाम" और जिहाद"का सही मन्तव्य समझने का प्रयास करें। धर्म,सँस्कृति,समाज,जनता और संभवतः राजनीति भी खासकर मुस्लिम देशों में।एक दूसरे से जुड़ी हुई हे और प्रभावित भी करते हें,इसलिए 

इन्हें सही और वैज्ञानिक रूप में समझ कर स्वीकारें,किन्तु,इसमें व्याप्त निरर्थक विकृतियों को नाकारना ज़रूरी है।कबीर की पंक्तियाँ कहें तो "सार सार गहि करे,थोथा देय उडाय", यह सब मेरे मौलिक विचार हें राष्ट्रकविजी के विचारों के साथ।

 इन विचारों से मिलते जुलते भारतवर्ष के मूर्धन्य कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंगजी के कार्टून भी हैं जिसमें एक जानवर रूपी  इन्सान है जिसका शरीर धर्म जानवर का है पर सर इन्सान का जिसने नेता की तरह सफेद टोपी पहनी है और उसपर लिखा है राजनीति। *(जैसा कि विवेकानंदजी ने भी कहा है-" वेदान्ती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर के संयोग से जो धर्म खड़ा होगा,वही भारत की आशा है।")*

 

, कल शाम को (18/07/2011), मैने टीवी पर अर्णव गोस्वामी कि परिचर्चा सुनी-"कुमुनलैज़ींग औफ़ टर्रोर",यानी आतंक का साम्प्रदायिकरण ",मेरे विचार से इसे आतंक का राजनीतिकरण कहा जाना चाहिए।।मेँ मानती हूँ चाहें आतंक लाल,हरा,भगवा या काला 

हो-वो तो बस हमारी मानसिकता है और मानसिक स्थिति भी।जिसे हम अन्ग्रेजी में माईंडसेट और स्टेट ऑफ़ माईंड कहते हें।मेरे विचार से धर्म हमारे जीवन की पद्धति है,अगर आप किसी भी चीज़ या जीव में यकीन करते हें,और उसे महसूस करते हें,व इश्वेर की तरह मानते हें,उसके लिए आपकी आस्था बन जाती हें।जैसे वैष्णव बाल या योगी कृष्णा में प्राण प्रतिष्ठा कर  उसकी सेवा करते हें,"पूजो तो भगवान है,ना पूजो पाषण," अर्थात आस्था,श्रध्दा अगर मिट्टी या लकड़ी की मुर्ति में हो,वो आपके लिए इश्वेर हो जाता है,वरना वो मात्र एक पत्थर या लड़की की सजावट की वस्तु है।आतंकवादी 

तो विशुद्ध अपराधी यानी क्रिमिनल्स होते हैं।और अगर वे किसी धर्म का उपयोग आम नागरिकों को डराने धमकाने के लिए करते हें।ताक़ि वे स्वयं को शक्तिमान समझ सके या फिर किसी और मिशन से,लक्ष्य से वे ऐसा करते हें तो भी में मानती हूँ वे लक्ष्यहीन हें,और लक्ष्य से भटके लोग हें,मिशनलेस मिस्ज़ैलेस।।

 

ऐसे भी आतंकवाद को बदला और बदले की भावना से की गई वारदातों का जमला पहनना यह उनका कोई दूरदरिष्टीवाला कदम नहीं यह ना तो कोई बड़ा मिशन है ना ही जिहाद,जैसा कि वो सब कहते हें।इससे हासिल शक्तिमान होने का एहसास शंभंगुर है।

 

",अगर उन्हें ऐसा लगता है अपने विचारों व यकीन को हम पर थोपना चाहते हें।सशस्त्र बलपूर्वक,किसी धर्म के कन्धों पर अपनी बन्दूक रखकर या फिर उनकी वह सोच जिसे किसी भी विचारधारा का नाम देकर अपनी मानसिकता का अमलीजामा पहनाते हैं।अपनी मानसिक स्थिति को थोपते हें और भटके हुए मिसाइल की तरह कहीं भी फटते हें।खूनी खेल खेलने के लिए ताकि आपने धर्म के लोगों पर एहसान कर सके,उन्हें लाभ पहुंचा सके,आपने दायरे व क्षेत्रफल को बढ़ाते जाएँ ताकि उनके आधिपत्यवाले राज्यों को फायदा मिले,धार्मिक और प्रशासनिक फायदा और उनकी सोच थोपी जा सके या फिर अपने निहित स्वार्थ की सिद्धि हो सके,दबदबा बनाने के लिए ....फिर तो यह दुखद ही है।अगर आप इतिहास को पलट  कर देखें तो जानेंगे कि कोई भी साम्राज्य मात्र आतंक फ़ैला कर या स्वयं की सोच को थोप कर लम्बे  दौर तक़ राज नहीं कर सका   है।सेल्फ इम्पोसड दिसिप्लिन यानी स्वयं अनुसंचालित अनुशासन,सौहार्द्ता,प्रेम,शांति,जैसी भावनाओं की लम्बे दौर में जीत हुई है।फिर चाहें यह निजी जीवन की दिनचर्या हो, राज्य में,देश में,या फिर राजसत्ता हो।

 

कलमश्री विभा सी तैलंग 

24/05/2024



 01-Jun-2024 01:13 pmComment



Aise the humare Sam Bahadur Maneckshaw


जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी उस समय फील्ड मार्शल  #मानेकशॉ आर्मी चीफ थे, इंदिरा गाँधी ने उन्हें पाकिस्तान पर  चढ़ाई करने का आदेश दिया...  

 

इसके जवाब में जनरल मानेकशॉ ने कहा सैनिक तैयार हैे, पर उचित समय पर युद्ध करेंगे।  

लेकिन इंदिरा गाँधी ने तुरंत चढ़ाई  

करने का आदेश दिया...  

 

परंतु, उचित समय पर ही सेना ने चढ़ाई करके सिर्फ 13 दिनों में पूर्वी पाकिस्तान को बांगलादेश बना दिया...  

उचित समय आने पर श्री मानेक्शा इंदिरा गाँधी से बोले..."मै आपके राजकाज में दखल नही देता.. वैसे ही आप भी सैन्य कार्यवाही में दखल मत दीजिये"...  

 

इस के पश्चात 1971 के बाद से जनरल माणेकशा जी का वेतन बंद कर दिया गया...  

परंतु, माँ भारती के इस सपूत ने कभी भी अपने वेतन की मांग नही की...  

 

25 साल बाद जब वो हॉस्पिटल में थे तब एक दिन श्री  ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, राष्ट्रपति पद पर रहते उनसे मिलने गए...  

 

उस वक्त बातचीत के दौरान ये बात राष्ट्रपति श्री कलाम साहब को पता चली कि जिस व्यक्ति ने अपने देश के लिए 5-5  युद्ध लडे, उस योद्धा को 1971 के बाद से वेतन ही नही दिया गया... तब उन्होंने तत्काल कार्यवाही करके उनकी शेष राशि का भुगतान लगभग 1.3 करोड़ रुपये का चेक उनको भिजवाया... ऐसे वीर योद्धा को भी इस महान गाँधी परिवार ने नही छोड़ा... अत्यन्त ही शर्मनाक बात है!!  

 

जय हिंद जय भारत



 01-Jun-2024 12:08 pmComment



अब कब तक़ सहेंगे ???


आतंकी गतिविधियों में शहीद हुए और घायलों को समर्पित,1984 से पहले और अब तक।

 

अब कब तक सहेंगे??

और अब कब तक सहेंगे??

आतंक के साये में  और ना जिएंगे।

यह शुरूआत है एक जंग,

हर गलत के खिलाफ 

जो हाथ मारने को उठे निर्दोष को

वो रोक दिए जाएँगे।।

 

आतंक मन पर हो या तन पर 

अब और ना सहे जाएँगे,

अब और ना सहे जायेंगे,

अब और ना सहे जायेंगे,

हमारी मनशक्ति भारी पड़ेगी 

उन हथियारों पर 

यह आनेवाले हर दिन में साबित कर बतायेंगे 

हम सिर्फ बातों के धनी

कागज़ के शेर नहीं

हम अब और ना सहेंगे।

आवाज़ रोज़ उठाएंगे और 

इससे साबित कर बतायंगे??

कि पार्लियामेंट हो या देश का

कोई भी हिस्सा 

अब हम आतंक के काले साँप को

मन पर भी नहीं छाने देंगे।

हम तैयार हें किसी भी 

जाँच परख के लिए ।

पर अब और कब तक़ सहेगे।

अब और कब तक़ सहेँगे??

भारत,पाकिस्तान,अफगानिस्तान,

चीन,अमरीका....

जो भी हो जवाब चाहिए???

[22/05, 14:13] Vibha Tailang: अब हम आतंक के साये में

और ना जिएंगे,।??

यह है शपथ!! यह है शपथ??

आतंक,नक्सलवाद,उग्रवाद

चाहे कोई भी वाद हो

उसके "हिन्सा" के आगे में 

शहीद हुए और जो उसके शिकार हुए

उन सबको मेरी श्रधान्जली 

मेरा तहे दिल से सलाम।

 

कलमश्री विभा सी तैलंग



 22-May-2024 08:06 pmComment











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