50 patte, 50 panne
45. My name is India |
INDIA IS SHINING OR RISING OR EMERGING
SOME SAY INDIA IS SHINING,
DEFINTLY JEWEL SHINES AFTER POLISHING,
DUST OR DHUL CAN NOT COVER ITS GLITTER'S TO REFLECT FOR LONG!!
SOME SAY INDIA IS EMERGING,
TALENTED PEOPLE CAN NOT BE DROWN OR SINK IN WHIRLWIND FOR LONG!!
I SAY INDIA IS RISING,
AS AURA OR TEZ OR RAYS OF SUN,MOON,STARS CAN NOT BE STOPPED,OR ECLIPSED FOR LONG!!
TRAP YOUR TALENT,TRAP JEM IN YOU ,TRAP THE VISIONARY IN YOU,
TAP YOUR QUALITIES AND LET THE WORLD GLOW WITH ITS BEAUTY,
LET THEM NOTICE ITS ODOUR,GET ATTRACTED TO IT,
LET THEM LIKE IT,IMBIBE IT,INCULCATE IT,
LET THEM BE HAPPY AND FOLLOW IT.
YUVA BHARAT,YUVA HINDUSTAN,YUVA INDIA
IS READY TO TAKE EVERYONE ALONG,OLD,YOUNG,KID,MEN,WOMEN,LGBT,ALL LIVING BEING!!
OR MAY BE NON LIVING...HOLDING EVERYONE'S HAND LIKE A HUMAN CHAIN!!,
WORK,PLAY,PROGRESS,ENJOY AND MARCH AHEAD!!!
SO DON'T UNDERESTIMATE ANYONE'S POTENTIAL!!!
LIVE AND LET EVERYONE LIVE,SHARE AND CARE,
KEEPING MORAL AND HUMANE VALUES INTACT,
WITH EYES AND WINDOWS OF YOUR HEART AND MIND OPEN.
GOOD WISHES!!
VIBHA TAILANG....HAPPY NEW YEAR AND MERRY CHRISTMAS,NAV VARSH SHUBH HO!!!
I WAS READING 'BRANDING INDIA' WRITTEN BY MR AMITABH KANT' ONE EVENING,LAST YEAR,AND SIMILTENIOUSLY WHILE CHATTING WITH A FACEBOOK FRIEND FOR FEW MINUTES,I ASKED HIM TO GIVE A SLOGAN,OTHER THEN 'INDIA SHINING',HE SAID,"CAN'T SAY.YOU SAY IT. ", "I SAID IT SHOULD BE "INDIA RISING".
NEXT DAY I SAW SOME DISCUSSIONS ON TV CHANNELS SAYING INDIA SHOULD BE EMERGING,LATER ON RECENTLY DURING MR OBAMA'S VISIT TO INDIA,EVEN HE HAS SAID,"INDIA HAS EMERGED"!!!
.....WELL WORDS AND SLOGANS LIKE 'EMERGING AND SHINING' ARE EQUALLY GOOD, BUT ITS BETTER TO SAY "INDIA IS RISING',I BELIEVE.THAT'S MORE INDIAN,CONTEMPORARY,MIX OF WORLD'S ALL SIDES FAMILY/MORAL/HUMAN VALUES...EAST/WEST/NORTH/SOUTH/... BUT ITS MORE EASTERN.
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44. कौन दिशा में जयभी? |
चिड़ियांन की चहक, माटी की महक,
पुस्तक निकालाबाय संपादक कहलको,
आग्रह कैलेंको,
एकगो कविता भेजितीए,
तोह हम प्रयास करेहीये,
मगही में लिखियेके,
धरती की समझ
बुझाईल तोह कलम चलिहे,
तोहओं अब महसूस करिहों
तोह समझकर तारीफ करिहे।
कहावत सुनिलीयालहल
चिड़िया चुग गई खेत
अब समझलिए,
वोट देकर नेताइनजी को सरपंच बनावो,
फूल-माला पहनावो,
और पांचों साल वो हमें
भुलायेले रेहथींन!
देस बिदेश की सैर सपाटआ करें में
वो व्यस्त रेहथींन,
अप्पनए माल सम्पति बढ़इते रहेथींन!
हर गाँव कस्बे में,
परिवर्तन बदलाव हममें के,करके हो!?
ऊ तो बस अपना विकास,करते रेहथीं
नेताइन के खेत बढ़ते ही जैतओ,
चलो भला हो सरपंचनजी की
आखिर,हमसबके बेरोजगारी
दूर करे के उपाय जो सोच लखीन,
हमाइए लोगन को उनके खेत चक्की गाड़ी गैराज
फैक्ट्री चीनी मिल दुकानों में काम मिलते रहतोह
केतेने कै बेरोजगारी दूर होतेये!
कितनए के बेरोजगारी दूर होतेये!
केतनए के बेरोजगारी दूर होतेए !
केतने के खेतिहर मजदूरों को
असंगठित वर्ग में मजूरी मिलतैय!
सोचायेहिय अगर उनके खेत व्यापार
में उन्नति होयेते तो
कितने लोगन को रोज
दिहाड़ी तिहाड़ी काम मिलताय !?
काकाजी कहीँन मत बिसराव,
हम गरीब रहबाय,
तभी तो
य़ह अमीर होयेथींन !
और अब
इनका अपना पंचवर्षीय विकास होताए,
तभये न हम गाँव निवासी को
काम भेंटतये!
जरा समझी,सोचिए,विचार कर हियन!
और इनका हाथ मजबूत करिहै,
फिर चुनाव होताइए पांच साल बाद
हो इनकाये अंगुली कस के पकड़ ही यें!
इनके ही वोट देखिये,
क्योंकि
सरपंचाइन के ही विकास से
हम सब का विकास होताये!
इनका हाथ मजबूत करो
इनको है,चिड़ियांन की चहक,
माटी की महक की समझ
वो कहते हैं ना,चिड़िया चुग गई खेत!
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
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43. असल शृंगार पटार जीवन के |
माटी में मिलके छई,
इह सुन्दर मूरत काया कै तो,
बहुरिया काहे को इत्ते
श्रींगार करें छीः??
नख में नख पालिश,पाँव में आलता
मेहंदी, चूडिय़ां,हाथियों भर के सजायला !!
पायल, बिछइया,चूडी कंगना
कहूँ ना काम आयतो,
गर बेटा ना भेंइटलो,
सासु के आशीष भेटें तो
सासरे स्वर्ग बनीयतो,
भर मांग सिंदूर शोभतो
भाल पर बड़का टीकुलिया
राज्यरानी सा राज करभेए जो
बेटा की माहतारी बनिए तहों,
होयलो बिटियान की फौज बहुर
नर्क का द्वार खुलतौ!
जी के जंजाल बुझीलें
बेटियों की भीड़ बनय!
दान दहेज में घर बार बिकतौ!
बेटा होताओ तौह,
पुखरो के नाम बढ़तो!
बहू नीक हातो तो घर को
सोनौ पैसों से भरतो,
भरतार को राज करे तोह
पोते का मुहँ दिखाईंतोह!
बेटियों के पाँव छाओ से भी
उधारी बोझ से नींद उड़ताओ!
पढ़ाई लिखाई कईते करेंभी,
सासारे में ख़ज़ाना भरतो!
बहुरिया तौके सीख देछइयों
गांठ बाँध ले पल्लू से
बेटा ना भैलो तोह,
साज शृंगार काहे के!
मोह-माया घर बार के शोभातो
जो कृष्ण कन्हैया घूमते फिरताऔ
जीवन सफल चाहो तोह,
मेरी जुबान याद रखिओ!
सोच में पढ़िहै,आज बहूरानी
बेटियों को बचाओ,
बेटियों हमारी स्वाभिमान!
कुल को बढ़ाओ,
बेटा जन्मों,बहू लाओ
वो हमारे अभिमान!
डॉ कलम श्री विभा सी तेलंग
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42. अप्पू हाथी, रेल के पिंजरे में! |
वो देखो अप्पू हाथी!
रेल के पिंजरे में,
नीला है या ग्रे रंग का?
एक नाटक देखा था
लाल लाल हाथी,
वो एक
बच्चे की कल्पना की उपज थी
पर य़ह तो रेल में, फिर
पिंजरे में क्यों है? अंकल?
इसे पिंजरे में क्यों रखा?
बेटा! रेल से इसे दिल्ली के
चिड़ियाघर से, बीकानेर जू
ले जा रहे हैं ना,अब इसे वहीं रखेंगे
अच्छा! पर हमने मायावती आंटी के
पोस्टर में वो सुधीर तेलंग अंकल कार्टूनिस्ट है ना,
उनके कार्टून देखे?वो तो नीला-नीला हाथी था,
इंक पेन से बनाया होगा ना,
शायद इसलिए, य़ह ग्रे क्यों है?
बेटा! ये कल्पना नहीं, संजीव है!
हमारी तरह गन्ने,केला खाता है!
बच्चों को पीठ पर बिठा कर
घुमाता भी है!पर गुस्सा आए तो,
जमीन पर पटक कर,
कुचल भी देता है!
बाबा रे बाबा!
मैडम ने भी कहा था,
किसी भी पशु-पक्षियों
को तंग नहीं करना चाहिए!
प्यार से रखोगे,
तो वो भी प्यार करेंगे!
गुस्सा ना दिलाना,
उन्हें परेशान ना करना!
अप्पू आई लव यू!
हम सब तुम्हें रेल के पिंजरे
से बाहर निकालेंगे, डरना मत
पिंजरे में हाथी, अप्पू, हाथी!
ग्रे ग्रे अप्पू, हम सबका अप्पू
वी ऑल लव यू,
lappu-gappu-appu!!
डॉ कलम श्री विभा सी तेलंग
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41. रफ्तार |
अब हम जीवन की दौड़ में बहुत तेज दौड़ने लगे हैं
इसीलिए
खिड़की के बाहर
रफ़्तार से दौड़ते हुए
पेड़ों इमारतों के पीछे छोड़ते हुए
सूरज को देखना
अब हमारे लिए
कोई मायने नहीं रखता!
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40. मेरी जिंदगी |
काश! मैंने जिंदगी जीने के लिए जिया होता
मेरी भी कोई कहानी होती,और कोई अफ़साना होता
लेकिन हाय! जीवन कोरी कल्पनाओं में बीत गया!
मेरे जीवन का प्रभात काल,
किताबों के बोझ तले,
निर्ममता से कुचला गया
तो सुहावनी दुपहरी,
राशन की लाइन में
अपनी बारी के आने के
इंतजार में ढल गई,
आधी जिंदगी तो बेरोजगारी,
घेराव,हड़ताल में बीत गए
बच्चों के रेले को संभालने में
पल कैसे गुज़रे
मेँ जान ना सकीं
और अब दिन का अवसान
समीप है, मैं रुक कर इस दिन
को देखती हूँ, तो लगता है
दिन ढलने को आया,पर हम तो
वहीं खड़े हैं,जहाँ से चले थे
और, मेरे सपने,मेरा आदर्श,
इस कठोर दुपहरिया में पसीने
कि तरह पूंछ गए!
और फिर शाम ढलने को आयी है
जीवन मे महाकाल की कालरात्रि
घिर आयी है!
मेँ पीछे मुड़ कर देखती हूँ,
तब सोचती हूँ,
काश! मेँने जिंदगी जीने
के लिए जीया होता!
मेरी भी कोई कहानी होती
और कोई अफ़साना होता
कोई तो मुझे जाननेवाला होता,
मेरी भी कोई कहानी होती,
पर अब तो सबकुछ मौन है
मेरे जीवन संगीत की तरह,
सब संसार, सन्नाटे में विलीन,
शायद यही मेरी जिंदगी थी
और यही मेरी नियति भी!
डॉ.कलम श्री विभा सी तेलंग
|
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39. नव वर्ष 1987 कौन हो तुम? |
किसी का आना
स्वप्निल द्वार पर
दस्तक देना
कौन हो सकता है??
तुम्हारी शरारती आंखों में
चमक
मुस्कराते होंठ
पास बैठ
मुझे निहारना
सहलाना
फिर चूम लेना
तुम्हारा स्पर्श
य़ह भोला चेहरा
तुम ही हो यह मैं जान गई!
तुम नहीं हो
क्योंकि
तुम आए ही नहीं
वो तो मैं
तन्द्रावस्था
में थी
क्यों???
डॉ.कलम श्री विभा सी तेलंग
|
| |
38. नववर्ष सन 1987 तुम और में |
तुम से दूर रह कर भी
कभी तुम
इतने पास होते हो
कि,
धड़कनें
अनियंत्रित
हो जाती हैं!
बिल्कुल बिदके घोड़ों
के समान!
शरीर स्पंदित,
सजीव हो उठता है
होंठ थरथरा उठते हैं,
और लगता है
तुम मैं हो
मुझ मैं हो
मेँ ही तुम हूँ
सम्पूर्ण जगत
तुम में सिमट कर
मुझ में
समा गया है
और सिर्फ
मेँ ही मेँ
की गूँज
चतुरदिक में है!
पर अचानक
तुम छिटक कर
आकाशदीप बन जाते हो!
जिसे मेँ
देख तो सकती हूँ
हाथ बढ़ा सकती हूँ!
पाने को मचल सकती हूँ,
पर पा नहीं सकती
असहनीय है
यह वेदना
यह अलगाव
यह....
तुमसे निवेदन भी है
आज्ञा भी,
मत आओ पास अगर
दूर जाना ही है!
तुम्हारा ना आना
मै सह सकती हूं
पर आ कर जाना नहीं!
डॉ कलम श्री विभा सी तेलंग
|
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37. नववर्ष सन 1987... सरस्वती वंदना |
ओम
या देवी सर्व भूतेशु,विद्या रूपेण संस्थित
नमसतैस्या नमसतैस्या नमसतैस्या नमो नम!
जीवन का व्याकरण (27 नवंबर 1986)
हमारी सुहागरात बीकानेर में
कर्ता के कर्म करने से ही
कुछ उपलब्धी होती हैं!
जो उसे अपरिमित
आनंद प्रदान कराती हैं!
मेँ और तुम कर्ता हैं,
हमारा मिलन कर्म (काम)हें !
परमानंद की प्राप्ति (फल)है,
जोकि क्षणिक हैं !
इसमें स्पंदन जुड़ जाए,
तो यह जीव हो जाता है,
जो अस्थाई तो है,
पर क्षणिक नहीं!
डॉ.कलम श्री विभा सी तेलंग
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36. सन 1986 नवंबर मध्यरात्रि |
डूबता चांद,
टिमटिमाते तारे,
गूंजते झींगुर के गान,
सुहागरात्रि -मेँ और तुम
एक सुखद शाश्वत अनुभूति,
आदम,हौव्वा और रजनीगंधा
डॉ.कलम श्री विभा सी तेलंग
|
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35. नव वर्ष साल सन 1987 30 जनवरी 1987 |
विवाह के उपरांत पहले बार
आज मेरा जन्मदिन
दिल्ली के मयूर विहार फेज 2 के
182 Pocket A में
हमारे निवासस्थान
पर मनाया गया!
हर साल की तरह ही,
आज भी
यहां मेरा जन्मदिन मनाया गया!
बस लोग भिन्न थे,
और माहौल भिन्न था!
बाकी सब वही का वही,
कुछ नया नहीं!
लगता है यूँ, शायद,
मेरे अंदर का नयापन सो सा गया है
मेरा जन्मदिन,
गांधी जी की पुण्यतिथि
सोचती हूँ गांधीजी और में
व्यक्तित्व दो व अस्तित्व एक हैं
दोनों मनुष्य ही हैं
फिर भी इतने भिन्न क्यों हैं?
शायद मनुष्य ही ही हें इसलिए !
डॉ.कलम श्री विभा सी तैलंग
|
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34. नववर्ष सन 1987 ... अदिति का जन्म |
विवाह हुआ 24 नवंबर 1986 को,
सन 30 जनवरी 1987,
पहला जन्मदिन था
खबर मिली मेँ माँ बनने वालीं हूँ
दिल की वीणा के तार,
सन 1985 में झंकृत हुए
सन 1986 में राग बने,
सन 1987 में लय ताल बंधा
10 सितंबर को वो धरती पर उतरी,
मेरी नन्ही परी का जन्म हुआ
सन 1988 में स्वर साधित हो
गुंजारित होगा,
दिल माहौल देदीप्यामान होगा
अदिति,चीनु,चित्रआशा की
किलकारियों से गुंजायमान होगा
10 सितंबर 1988,पहले जन्मदिन पर
डॉ.कलम श्री विभा सी तेलंग
|
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33. नव वर्ष, 26 जनवरी सन 1987 |
26 जनवरी की सुबह
आज भी, हमेशा की तरह,
इस बार भी,एक बार फिर
गुज़रते क्षणों के समान
सिर्फ "गुज़र " गया!
डॉ.कलम श्री विभा सी तेलंग
|
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32. नया वर्ष सन 1987 |
नयी प्रभात,
नयी किरण,
नए रास्ते,
नयी मंज़िल,
एक सफल वर्ष होगा!
सुन्दर माहौल,
खूबसूरत तितलियां सी,
इनके कोमल,नाजुक पंख, और
जैसे हमारे सपने हों,
विश्वास है,
टूटेनगे नहीं
नववर्ष शुभ हो!
डॉ.कलम श्री विभा सी तेलंग
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31. साम्प्रदायिकता के ज़हर की समझ और दूरदर्शिता |
साम्प्रदायिक कौन होता है,
क्या आप साम्प्रदायिक हैं?
क्या मेँ साम्प्रदायिक हूं?
धर्म, जाति,साम्प्रदाय,वर्ग, लिंग,भाषा, भोजन,खानपान
वेषभूषा,संस्कृति साहित्य,रीति-रिवाज,लोक जीवन,लोक संस्कार,लोक गीत,
लोक संगीत,मंदिर कला और साहित्य,भक्ति भाव गीत भक्ति संगीत भजन
अनेकों आयाम हैं,
गिनते जायें तो,
क्या इन्हें जानना
इन्हें समझने का प्रयास करना,
जो कई बार कुछ
बनी बनाई अवधारणाओं को
तोड़ता है ,
कुछ कुरीतियों को,
कुछ सामाजिक परिस्थितियों को,
कुछ धार्मिक सरोकारों को,
कुछ पुराने संस्कारों को,
और उसे बदलने के लिए कदम उठाना,
तो कई बार कुछ को स्वीकार कर
परिष्कृत रूप में आगे बढ़ाने का
पुरजोर प्रयास या समर्थन करना,
क्या, य़ह हमें धर्मान्ध या अंधभक्त बनाता है?
या फिर नास्तिक,और अधार्मिक?
वामपंथी,दक्षिणपंथी,धर्मनिरपेक्ष,
पेरियार समर्थक,आधुनिकता,रंग और नस्ल भेद, जातिभेद,धर्मभेद
अमीर की, गरीब की सोच
पारंपरिक,अगड़ी-पिछड़े
जातिवादी सोच,
कट्टरपंथी ,पुरातनपंथी,मध्यमवर्ग
गांधीवादी,वैश्विक सोच,राष्ट्रीयता,
वाद कई है,सोच भी कई है,और सिद्धांत भी, इतिहास,भूगोल,गणित,
भाषा,कॉमर्स,इकोनॉमिक्स,आर्ट्स यानी कला, संस्कृति,खेल-कूद,अर्थ-शास्त्र,वाणिज्य,
पढ़ाई के दिनों की हर गतिविधियां
विषय जितने भी हैं,हमें विभेद,
भेदभाव, सिखाते हैं और जोड़ना भी,
रिश्तों देश और समाज को
जोड़ना और तोड़ना भी!
अब इसकी समझ कैसे हो कि आप
पाठयक्रम पढ़ते हुए अनजाने में ही सही,
क्या ग्रहण कर रहे हैं?
हम इंसानों की प्रवृत्ति है,
इतिहास पढ़ते हुए उत्तेजित हो जाना,
मुग़लों को याद कर मुसलामानों व
इस्लाम के पाठों को कोसने लगना,
उनके किरदार- बादशाहों को खरी खोटी सुनाना,
गुलामी के दिनों और आज़ादी के दौर में,
अंग्रेजों का उपनिवेश सम्पूर्ण विश्व में फैला था
सूरज सवेरे उनके साम्राज्य के पूर्व में उगता था
और शाम को उन्हीं के उपनिवेश के
पश्चिम में अस्त होता था!
उनके साम्राज्य में जो अत्याचार काले एशियन,
इंडियन,वेस्ट इंडियन,अफ्रीका के लोगों पर हुआ
जो लूटपाट हुई,
जो रंग और नस्लभेद
व जुल्म हुआ
इतिहास पढ़ते पढ़ते राष्ट्रीयता जोर मारने लगता है
और नफ़रतों को बढावा मिलता है!
हमारी मनोवैज्ञानिक स्थिति कैसी रही होगी,
उसका दृश्य आंखों में घूम जाता है!
उन्होंने राजकाज चलाने हेतु
जो देश को कई महत्वपूर्ण
इलाकों को रेल्वे से जोड़ा
पर हिंदुस्तानियों को थर्ड क्लास की टिकट ही मिलती थी
टेलीफोन से जोड़ा,
पर ये जन सुविधाए सबके लिए
बराबरी से उपलब्ध नहीं थी
मैकाले ने शिक्षानीति में
अंग्रेजी को अनिवार्य कर हमें उनकी
पर एक अंतरराष्ट्रीय भाषा सीखने पर
मजबूर किया, हाँ
कुछ कुरीतियों को ज़रूर
जड़ से उखाड़ फेंका!
हम उनके उपनिवेश थे,
पर यह बुरे में कुछ अच्छी बातें थीं
देश का विभाजन हुआ,
भारत और पाकिस्तान बने
और फिर बाद में बांग्लादेश भी!
अफगानिस्तान,श्रीलंका,भूटान,
म्यांमार,नेपाल,तो पड़ोसी बने रहे!
लेकिन इस
विभाजन का दर्द,
नफ़रतों,
उसके आग से गुजरकर भी
उसकी तपिश हमारे अंदर महसूस
होती है आज भी!
अब पाठयक्रम में जो पाठ शिक्षक
जिस अंदाज या लहजे से प्रस्तुत करते हैं,
य़ह उनकी सोच,
उनकी मानसिकता,उनकी पृष्ठभूमि,
उनकी विचारधारा,सिद्धांतों
और ज्ञान
पर आधारित होता है
कि वह किस तरह से तथ्यों
को पेश करेंगे
और किस लहजे से समझाते हैं!
य़ह बच्चों पर भी निर्भर करता है
वे सुनी हुई बातों को
कैसे ग्रहण करते हैं!
कैसे उनकी प्रेषित बातें
और ज्ञान आगे संप्रेषित होती हैं!
कई बार कॉलेज तक पहुंचते पहुंचते पाठयक्रम भगवा,हरा,नीला,लाल,
काला रंगों के
परत से लिप्त होता है
और हमें पता ही नहीं चलता कि
कब शिक्षा संस्थानों में
रंगोली बनाना,सुबह प्रार्थना सभा में
भजन गाना, योग,सूर्य नमस्कार,
गायत्री मंत्र पाठ करना,
हवन पूजन,सरस्वती पूजा,
दुर्गा पूजा, दिवाली होली इत्यादि
त्यौहार मनाना
भगवा रंग धारण कर ले और
धार्मिक अनुष्ठान माना जाने लगे!
कब सेवाईयां खाकर ईद मुबारक कहना
इस्लामौफोबिया कहलाए,
और खीर खाकर,लड्डू खाकर,
रक्षा बंधन मनाना हिन्दफोबिया !
केक खाकर जन्मदिन
मुबारक कहना
क्रिश्चियनफोबिया और फारसी फोबिया कहलाए
गुरुद्वारे में लंगर और प्रसाद खाना
सिखगुरु के अनुयायी!
हैल्यूसीनेशन तो किसी को हो सकता है!
(Seeing or hearing something that is not really there,because you're ill
or have taken a drug)
(बीमारी या नशे में होने वाला) दृष्टि भ्रम या मतिभ्रम,
(ऐसी बातें देखना या सुनना जो वस्तुत है ही नहीं, निर्मूल भ्रम)
वैसे भी हर धर्म में विभिन्न सम्प्रदाय है,
जाति है,वर्ग,और जनजातियां है,
लिंग भेद तो है ही!
इनको पढ़ते पढ़ाते हुए आप इसे कैसे ग्रहण करेंगे
यह व्यक्तिगत रूप से आप पर निर्भर करता है!
प्रगतिशीलवादी सोच,
प्रगतिशील बनाएगा,
वर्ना संभव है आप मुगल काल
अंग्रेजों के ज़माने या
और पीछे प्रागैतिहासिक काल में पहुंच जाओ!
स्वाभाविक रूप से ग्रहण किया गया प्रकृति प्रेम,
पशुओं पक्षियों से,पेड़ पौधों से लगाव,
सहजता से सीखी गई
बागवानी,खेतिहर किसान मजदूरों के नुस्खे,
स्कूल में ऐस पी डब्ल्यू (S.U.P.W)
विषय में काम आता है!
क्राफ्ट और कार्पपेंट्रीकारी को
हेय ना माने तो
भविष्य में काम आते हैं!
साम्प्रदायिकता के ज़हर की समझ
बचपन से विकसित हो जाए तो
बड़े होने तक आपकी सोच में
अपने साथ साथ देश समाज
व विश्वबंधुत्व की बात
सुलझे तरीके से समझ पाएंगे!
उसे क्रियान्वित भी कर पाएँगे!
दूरदृष्टि यानी योजना जो सालों पहले
सोचा उसे वक़्त रहते कर पाए
दूरदृष्टि यानि सालों पहले जैसा विचार किया
वैसा पंचवर्षीय या बीसवर्षीय योजना की तरह
5 या 20 सालों में फलीभूत हुआ!
वर्ना अन्य कौम सम्प्रदायों के लिए
नफ़रतों को दिल दिमाग में भर कर
दंगाई बने फिरते रहेंगे या जेल में सड़ते रहेंगे!
आंकड़े बताते हैं तमाम दंगों में
स्कूल और कॉलेज के छात्रः छात्राएं
भी देखी और पकड़ी गई!
डॉ कलम श्री विभा सी तेलंग
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30. आंखों की लाली,नशा भी हो सकती है |
नशा नहीं होती हमेशा
आंखों की लालिमा!
मुहावरा तो सुना होगा आपने?
आंखें तरेरना,आंखें लाल करना!
ऐसा करना,
ग़ुस्से में पागल होना ही
नहीं होता हमेशा,
केनजेकटीvitis की बीमारी भी हो सकती है!
आंखों में खून का थक्का जमना
किसी नस का फटना
रक्तचाप के बढ़ने से,
रक्तस्राव होने का संकेत भी हो सकता है!
बात इतनी सी ही नहीं,
आंखों में आंखें डालकर तकना
जैसे रोमांस नहीं होता हमेशा!
स्वाभिमान से,अभिमान से,
हिम्मत से,जुर्रत से,आत्माविश्वास से
बातें करना भी कहते हैं इसे!
जिसे अंग्रेजी में हम
बॉडी लैंग्वेज कहते हैं
लेकिन डॉक्टर इसे अंधेपन
और rataundhi
जैसी आंखों की
बीमारी के लक्षण भी बताते हैं!
साथ ही साथ वो हमें
नशा पीड़ितों के हरकतों
की झलक भी समझाते हैं!
आओ आंखों में धूल झोंके बिना
आंखों की लाली की गहराईयों को मापें
और नशा करने के लत के आदी होने के
परिणामों के जानकार बनें,
सतर्कता बरतें और सजग रहें!
आओ चलो आप सबको दिखाएं झांकी नशीली जहान की,
रंगीन दिवास्वप्न सी लगती
जहरीली खूनी पगलिस्तान की!
नशे के दुनिया की,
नशा के लत में
नशे के धुन में,
नशीली होती जिंदगी
जवाँ युवा वयस्क वृद्ध ही नहीं,
बच्चों की रक्तon के जहरीली होते जाने की दास्ताँ की
य़ह दास्तानगोई वास्तविकता है
इस नर्क की
जिसे वो स्वर्ग समझ गवां रहे
धन उम्र जीवन और खुशियों को
जीना छोड दिया घर परिवार में
घरवालों,मित्रों और समाज के लिए!
य़ह जुनून मौकापरस्ती
या महत्वाकांक्षा
कुछ बड़ा कर जाने,कर दिखाने,
उन्नति धन यश पुरस्कार पाने का नहीं
या फिर अपना साम्राज्य बढ़ाने का,
युद्ध करने और उसे रोकने का भी नहीं
य़ह है,अपराध करने
और उसका सिरमौर बनने का,
नशे का सौदागर बन
नशा बाँट नशाखोरी का
धंधा बढ़ाने का,
नशे के पिनक में रखनेवालों को
भिखारियों के भेष बना कर,
बच्चों को चुरा कर,
भिखारियों की सेना बनाने का,
उन्हें तड़ीपार कर
अंतर्राष्ट्रीय शृंखला
और सत्ता बनाकर
अक्षम होते युवाओं
के भावनात्मक रूप से
कमजोर पड़ते भावनात्मक मन में,
अपराधवृति को बढ़ाने के लिए
दंगों फसाद करवाने के लिए
उनमे आक्रामकता बढ़ाने के लिए
हर तरह के खेल को जीतने के लिए
नशे की लत लगाते हैं,
इसे बेचते-बिकवाते हैं!
खेल के मैदानों में,
खानों में,खदानों में,
खेत खलिहानों में
राजनैतिक अखाड़ों में,
दंगल के धोबी-पछाड़ में,
बॉडी बिल्डिंग में,
मिस्टर इंडिया बनने में,
कंप्युटर वीडियो गेम में,
नशाखोरी की ज़रूरत
समझाते हैं,शर्तें लगवाते हैं,
लत लगने पर
माल देते, बाँटवाते हें,
बीमार पड़ने पर डॉक्टर
बीमारियों की लंबी लिस्ट बता कर
डी-addiction@नशा मुक्ती कैंप भिजवाते हैं
वहाँ इलाज के लिए ड्रग्स थोड़ा सा देंगे!
रोग का इलाज जिससे रोग हुआ,उसी से करेंगे!
पुलिस ने पकड़ा तो,
हमारे देश में NDPS ऐक्ट 1985 ज़रा सख्त है,
कोर्ट कचहरी में,
मानवाधिकारवाले वकील को बुलाना,
वो जिरह करेंगे,
उन मतलब संयुक्त राष्ट्र के कानून
और कुछ अन्य देशों में,
कैसे इसके उदार कानून बनाए गए हैं,
बताएँगे,आपके पक्ष में दलील देंगे,
कहेंगे,लत लग जाए तो दवा के रूप मेँ,
इसका उपयोग करवाया गया है!
कहानी यहीं नहीं रुकती,
6 महीने की जेल,10,000/-का जुर्माना लगे
या 1 साल की जेल और 20,000/-जुर्माना!
पूरा चक्र या दुष्चक्र है,
एक गठजोड़ है, इन धंधेबाजों का,
राजनीति से लेकर
उपभोक्ताओं तक से,
पैसे-उपहार खिलाते और खाते हें,
नशे का कारोबार फैलाने मेँ
सहयोग पाते हैं,
बस जागरूकता चाहिए कि
कोई आपका इस्तेमाल ना करे!
शराब,ड्रग्स,सिगरेट,बीड़ी,ज़रदा,
तंबाकू,गुटखा,पान मसाला,
सब सेहत और जेब के दुश्मन
अपनी जान स्वयं बचाएंगे,
तभी अस्पताल पुलिस,थाने,
कोर्ट- कचहरी से बच पायेंगे!
जहां गलत होता देखें,उसे रोकें!
पुलिस या संबंधित संस्था को खबर देंगे,
कारवाई होगी,तभी वाहवाही पाएँगे!
समाज परिवारों के व नागरिकों के समूह से बनता है,
एक एक बूंद से घड़ा भरता है,
एक छेद से जहाज डूबता है,
अनेकों कहावतें हैं पर एकल
और सामुहिक प्रयास हो!
समाज सुधार का दायित्व
किसका है
यह भी समझ जाएंगे!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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29. हिन्दी हमारी भाषा |
हिन्दी राष्ट्रभाषा बनी नहीं
हिंदीभाषियों की बोली थी
देश की 70 प्रतिशत आबादी
इसे बोलती रही पर
फिर भी हेय दृष्टि से देखी गयी
पर आज हम अनौपचारिक रूप से
इसे राजभाषा मानकर
सरकारी ताज पहनाते हें
राजकाज की भाषा है यह बतलाते हैं
जोकि अर्धसत्य है पूर्णसत्य नहीं
इसे दोयम दर्ज़े की उपाधि मिली थी
जब अंग्रेजों का शासन था
अपनी मातृभाषा भी
गुलाम मानसिकता से त्रस्त थी
वो मान नहीं दिला पाती
जिसके हम हकदार रहते रहे
देश 15 अगस्त 1947
को आजाद हुआ !
राजनैतिक रूप से आजाद भारतवर्ष
तब भी आर्थिक रूप से पंगु था
परतंत्र,हमें लोन माँगना पड़ा
हिन्दी को भी
जनभाषा होने के बावजूद
राजभाषा नहीं माना गया
माँ पिता आज भी अंग्रेजी को
अंतर्राष्टीय भाषा मानते हैं
पेट काटकर भी
अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाते हैं
नौकरी नहीं मिलती
अगर अंग्रेजी नहीं आती
विज्ञान गणित कंप्युटर मेडिसन
हिन्दी पढ़कर इनकी राह
आज भी है मुश्किल
क्यों ना हम हिन्दी को स्वदेशी से अंतरराष्ट्रीय बनाए
तकनिकी मेडिसन कंप्युटर आदि की
पुस्तकें शब्दकोश उपलब्ध करवायें
हिन्दी राष्ट्रभाषा को आमजन की भाषा बनाकर ही हम
जीविका दायिनि रोजगार दायित्रि
उन्नति के शिखर पर पहुंचने की सीढ़ी और पायदान बना पायदान
और तभी हमारी राष्ट्रीयता
और स्वाभिमान की प्रतीक
संस्कृत से जन्मी
गंगा जमुनी लफ़्ज़ों और तहजीब को
अपने में समाहित किए
तमाम राज्यों की
देशज और विदेशज शब्दों को भी
खुद के समाय,लोकोक्तियों
मुहावरों कहावतों लोकभाषा को
अपनाए हुए भी यह मिश्रित
हिन्दी गर्व की भाषा होगी,
जन जन की भाषा होकर भी
राजभाषा घोषित हो सकेगी
अंग्रेजी को सर्वोपरि माननेवाले
बुर्जुआवर्गों की सहमती से
प्रांतीयता को प्रमुखता देनेवालों के समर्थन से
आधिकारिक और औपचारिक रूप से
हम सबकी और हमारे देश की सिरमौर सरताज
पर अंतर्राष्टीय भाषा होगी हमारी हिन्दी
जय हिन्दी! जय भारती!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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28. ये महिला, वो लड़की? पुरुषों का क्या? |
मेरी सास और उन जैसी सभी बच्चियों माँ बहनो भाभीजी बहुओं बेटियों को समर्पित..
Meri Kavita 27/9/2022
..... परिवार नियोजन की सीख मे,
बच्चियों को स्वास्थ्य सम्बंधित सेक्स शिक्षा,
नसबंदी,क्या इसकी समझ पैदा करना नादानी है??
(सबहैडिंग)
छोटी थी वो, ग्यारह बरस की ब्याह दी गई, पड़ोस में ही ससुराल था धुरिया 16वर्ष का था तब दोनों को अधिक समझ ना थी शादी क्या है,रिश्ते क्या हैँ
और सम्बन्ध-सम्बन्धी क्या है, नातेदारी रिश्तेदारी रीति रीवाज़ों
की पाठ पढ़ाई घरवालों ने पर पति-पत्नी के सम्बन्धो में
क्या नज़दीकियां और क्या दूरियां हों किसी ने ना समझाया लाज जो आती थी, पर ऐसे लिहाज का क्या??
गौना हुआ,मधु 13की हुई, मायका भी मोहल्ले में ही था "गोस्वामी चौक",बीकानेर में. बेटी एकलौती अपने पिता की, माँ गुज़री,जब नन्ही थी! पिता समझाते भी तो भला किन किन बातों को? ससुराल में बड़ी बहु बनकर आयी 12 भाई बहनों में 1ननद बड़ी बाकी सब छोटे, पति 20का हुआ नन्दो का ससुराल भी उसी मोहल्ले में ही था... सब नज़दीक और आस पास खूब हंसी ख़ुशी का माहौल और रौनक का समा बंधा रहता पर इस वृहत कुनबे को बांध कर कौन रखता? इसकी ज़िम्मेदारी किसकी थी? मधु माँ बनने को आयी, मिट्टी के बर्तन के माफिक शरीर का गठन कच्चा था,
पर,श्रीकृष्ण प्रेस
और सरकारी कार्यों के चक्र में उलझे रहते. मधु के तन मन को उनके
भावनात्मक सहयोग की चाहत होगी ,
इसका एहसास उन्हें था, और यह उलझन उनके मन को खाता रहता.. पर आँखों की लाज रोकती घर भर का लिहाज जो था? पर कैसा थोथा लिहाज?? धाई माँ घर पर ही आती गर्भ के विकास की जांच हर महीने कर जाती दुबली मधु पीली ना पड़े, चेहरे की रंगत गुलाबी रहे, कमर का दायरा 2गुना ही बढे, शरीर व पैरों का सूजन लूनाई सा ही लगे, हाथ चेहरे पर चढी चर्बी किसी बीमारी का संकेत ना दे! दर्द सहन करना गोदना गुदवाने जितना ही हो.
मधु माँ बन गयी, पर उम्र कच्ची थी, किसी ने समझाया बच्ची को कैसे पकडे, कैसे संभाले, कैसे दूध पिलाये कैसे नेहलाए, धुलाइय, पर वो 2वर्षों में चल बसी. इस बीच मधु फिर गर्भवती हुई और वो फिर माँ बनी.
15वर्ष की आयु थी जब सुधा हुई एक बेटा हुआ था उनके बाद रमेश.17की थी, तब कुछ महीनों में चल बसा.
फिर सुधीर हुए,19 की थी तब और फिर बाई सा 4वर्षों बाद हुई! तब तक परिवार नियोजन के
बयार का असर हो चूका था
उन दोनों पर!
मुन्ना उसके 5 वर्षों बाद हुआ
मेरा मन कुछ उलझा सा था,
बालविवाह,बेटे की चाहत में कन्या लिंग जाँच और कन्या भ्रूण हत्या, अनवंचित्त बच्चे की दायित्व से बचने के लिए -भ्रूणगिराना, बीमारी की वजह से, किसी हादसे की वजह से, बीमार भ्रूण की वजह से भी और अनेको कारणों से @एबॉर्शन
पूर्वनियोजित परिवार @प्लानड पेरेंट्हुड की बातें,
नसबंदी के ज़माने से सुनी थी
मेरा एक लेख छपा था
"भ्रूण हत्या एक अभिशाप है और व्यापार भी",
दूसरा छपा- "भ्रूण हत्या के व्यापार पर कड़ा प्रहार",
पर इस माँ को और देश की बढ़ती आबादी को सहेजती
इन जैसी भारतमाता को कौन समझाता कि -"भ्रूण हत्या उनके लिए, छोटी उम्र में निदान था या अभिशाप??
आज भी सामूहिक बाल सावे होते है.
व्यवस्था की निगरानी में, उनकी नकों तले यह किसी और - काल खंड की बात नहीं
आज भी उन नाबालिगो की शादी को ना कोई रोक पाता है, ना ही कोई पंडित फेरे दिलवाते हुए
परिवार नियोजन की सीख देता है आज का सच यही है भाई कि
"सामाजिक विडंबना शब्द कोई अतिश्योक्ति नहीं?"
कब तक हम इस कडुए सच से आँखें मुंदे रहेंगे. सर्रोगासी, फाल्लस इनसेमिनेशन से गर्भाधान,
टेस्ट ट्यूब बेबी और भी कई उपाय बने पर उनका ग्रास रुट...
पूर्ण ज़मीनी हक़ीक़त
और सभी ऐसी समस्याओं का
समाधान बन पाना आज भी दूर का सपना है, ठीक वैसे ही, जैसे बाल विवाह के खिलाफ कानून हैँ
पर उस पर किस हद तक क्रियान्वयन हो पा रहा है हम सबने देखा है और देख रहे हैँ.... शायद देखते भी रहेंगे, जब तक सब स्वयं पर इसे लागू ना होने देने की प्रक्रिया को
अमल में लाने की कसम खाएं और क्रियान्वयन की तरफ आवाज उठायें
सक्रियता दिखाएं
साथ ही औरों को प्रेरित कर
उनका सहयोग भी करें व पाएं खैर
बेटियों को सेक्स की शिक्षा
परिवार नियोजन के सीख के साथ देना, पंचवर्षीय योजना समझाने जैसी बात है,
जैसे विवाह के फेरे करवाते हुए
पंडितजी सातों फेरों की व्याख्या करते हैँ
ठीक वैसे ही आशीर्वाद देते हुए
सब कहें बच्चे विवाह सम्पूर्ण हुआ,
सुख, समृद्धि, उनत्ति, यश, सौभाग्य पाओ बच्चे "हम दो, हमारे दो का ख्याल रखना ",...
5 सालों की दूरी दोनों संतानो के बीच रखना ठीक नये सरकार के बनने की तरह, आखिर एक समझदार पत्नी HI
बहु भाभी माँ BANTI HAI AUR,
पुरे परिवार को समझदार BHI बनाती है, और सामाजिक शास्त्र में परिवारों के समूह को समाज कहते हैँ. फिर चाहे जोड़ी ग्रामीण हो या फिर शहरी,
देसी हो या विदेशी,
कम्युनिटी शिक्षा, गर्लचाइल्ड,
बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ मेरी बेटी, मेरा अभिमान सारी समझदारी का बोझ
उन पर उड़ेल दो,
उम्मीदो का दामन पकड़ा दो बेटियों को जोड़ कर, उनपर ज़ोर डालो,
बाकी हिस्सा स्वयं बढेगा सरकार और समाज का एक कमज़ोर हिस्सा
मज़बूत होते ही देखना
देश का सम्पूर्ण और संतुलित विकास होना
शुरू होगा पूर्ण गति से.
यही गति सम्पूर्ण सत्य है
जय हिन्द! JAI BHARAT KI NAARI! डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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27. कुछ पंक्तियाँ कबीरजी के नाम |
कबीरपंथी गाते गीत
टापू में गूंजते अलख जिसके
'प्रीत 'की रीत के संगीत!
डंका बजती दोहे की,
जो शांति-प्रेम की राह दिखाए!
ढाई आखर प्रेम का,
जो पढ़े सो,पंडित कहलाये
जात-पात,वर्ग-भेद,लिंग-धर्म
ऊंच-नीच,स्त्री-पुरुष,
बच्चे-युवा-वृद्ध अर्धनारिश्वर,
अपाहिज,
बीमार-लाचार,गरीब-अमीर
जुलाहे,किसान,मज़दूर
सबमें प्रेम की रीत सही
जो सब पर एक सा बरसे
इंसानियत का डोर जो जुड़े
और तोड़े फिर भी ना टूटे!
कहे कलमश्री विभा सी तैलंग
कबीरा याद दिलाये
चौराहे पर खड़े खड़े राग सुनाये!
मानवता पर कलंक है,
भेदभाव,घृणा,नफरत,
ओछापन,आतंक के बोल!
मन के कलुष का द्योतक है,
जो!जिहवा पर कालापन होवे,
यही चलन है,कह कर
बदलाव,परिषकृत कर ना स्वीकारे,
अख्खड़-कट्टर,बोल-सुनाकर,
परिवर्तन के राह में बाधा डारे!
बालक-सा अबोध निश्छल मन हो,
गर प्रेम स्नेह प्रीत हो रीत!
वरना सब अवरोधक बने,
शांति के राह में रोड़े अटकाएं,
देश, समाज, परिवार,व्यक्ति,
विश्व-शांति के पथ-प्रशस्तक!
जो बीज हम मन में बोएं,
कल को फल उसी वृक्ष की खाएं!
कह कबीरा इठलाये,
विश्वागुरु ऐसे ना बनिहें,
गुरु के गुरुत्व को समझकर
जुलाहे! चादर बुनिहें,
अपनी संस्कृति
की झलक को उसमें बुनकर,
चादर उतनी ही फैलाएं!
अपनी देह टांग जितनी में आए,
औरों को भी राह दिखाए!
कह कलमश्री विभा सी तैलंग
नमन! कबीरजी को करे
ढाई आखर प्रेम की पोथी से
जो विश्वबंधुत्व की पाठ पढ़ाये!
परिवर्तन का बयार बहाये,
सुख,शांति,उन्नति,समृद्धि,
यशस्वी,होने की राह बताये!
नमन
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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26. कौन हूँ मैं |
कौन हूँ मैं???
सोचती हूँ मैं -आज मैं कौन हूँ???
पापा की वह बेटी
जो चाँद के लिए मचलती थी
मम्मी की बेटी जो रोटी में नक़्शे देखती थी
स्कूल की वह शिष्या जो किताबों में से
सरस किस्से ढूंढ़ निकालती थी??
या वह जो सर और मैडम की शक्लओं में
काल्पनिक पात्रों के चेहरे ढूंढ़ती थी??
या आप सब की सहेली, जो आम की
अम्बियां तोड़ती, कूदती-फान्दती
खेलती, भागती, हँसती गुनगुनाती
हर पल में कुछ नए सपने बुनती
कुछ भोली, कुछ बुद्धू, थोड़ी बदमाश
कुछ धीमी /जीवन की चाहत में हर ओर
सबके शब्दों और चेहरों को ऊकेरती
वो लड़की जो भारतीयता के जज़्बे
को लिए दिल्ली पहुंची थी
आज भी मैं चाँद,
सूरज में अपना भविष्य
देखती हूँ!
नक़्शे को रोटी में कैद कर
रोटी को सबको बाँट देना चाहती हूँ
इतिहास के पन्ने, आज भी कुछ
सीख और सबक देते हैँ??
पुस्तकों के अक्षर रेंगते से, भविष्य
की लकीरें खींचते हैं!
जीवन की सीढ़ियों गणित के
जोड़ -घटाव सारीखे से
गुरुजनों के बोल राह दिखाते हैँ
आज सब करीबीयों का जज़्बा
संजीवनी औषधि की तरह
यादों में से निकालकर लाइटहाउस
बन जाते हैँ
आप सबके जज़्बे को नमन
आप सब स्पेशल हैँ!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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25. कबीरजी के दोहों में नारी विवेचना |
कबीरजी के दोहों में नारी विवेचना भाग 2 में मेरे विचार संप्रेषित हैँ!पर पहले उनके कुछ दोहों को उद्धारित करना चाहूंगी उसके सन्दर्भ सहित!
जहाँ कबीरजी एक तरफ नारी को रत्नो की खान कहते हैँ, और कहते हैँ वे ही प्रभु भक्तों, संतों को जन्म देती है!उन्हें नरक़ मत समझो!
"नारी नरक़ ना जानिए, सब सौतन की खान,
जामे हरिजन उपजे, सोइ रतन की खान!"
दूसरी तरफ उसे विष की बेल कहते हैँ
"छोटी मोटी कामिनी, सब ही विष की बेल,
बैरी मारे दाव से, यह मौरे हंसि खेल!
या फिर उन्हें "सर्पनी कहकर पुकारते हैँ!"
"कामिनी सुन्दर सर्पनी, जो छेरे तिहि खाय,
जो हरि चरणन राखिया, तिनके निकट ना जाए!"
जहाँ उन्हें "नारी पुरुष की स्त्री, पुरुष नारी का पूत
यहि ज्ञान विचारि के, छारी चला अवधूत ",
तो उन्हें विषफल भी कहते हैँ -
"नारी पुरुष सब ही सुनो, यह सतगुरु की साखी
बिस फल फले अनेक है, मति कोई देखो चाखी!
उन्होंने कहा है -"नारी और धन से जीवन के दो अत्यंत ख़तरनाक बिहड़ घाटियाँ को पार कर के ही कोई परमात्मा के शरण में पहुँच सकता है!"
"चलो चलो सब कोय कहे, पहुंचे बिरला कोय
एक कनक और कामिनी, दुर्गम घाटी दोय!”"
अब मेरे विचार पढ़ें-
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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24. मैं मज़दूर की बेटी सीमा |
नमस्कार।
शीर्षक- मैं मज़दूर की बेटी सीमा
वो मज़दूर की बेटी है,
फसल काट रही थी माँ
भुट्टे के खेत में, जब दर्द उठा
अस्पताल जाना तो दूर
दूसरी मज़दूरनियों ने
साड़ी का तम्बू सा घेरा बनाया
वहीं वो जन्मीं,वहीं हंसिये से
नाल कटा,खेत की मिट्टी ही एन्तिसेप्टिक थी
नाम दिया "सीमा",
सीमा की सीमाएँ
खेतों की मैढ़ और पोखर की
मछलियाँ पकड़ने तक़ ही सीमित ना रहे।
माँ ने उसे स्कूल भेजा
मेरी बेटी सीमा पढ़ लिख कर
अफसर बनेगी,तो हमारी और
हमारे इस गाँव की
तक़दीर व तस्वीर बदलेगी
खेतिहर मज़दूरों का जीवन
उसने जिया था
देखा था माँ को
दिन भर पत्थर तोड़ते
बोझा ढ़ोते
फसल काटते,बीज बोते
क्यारियों को फिर से जोतते
पानी दूर नहर से लाते
हाथों से मेढ़ बना कर
पानी की धार खेतों तक़ पहुंचाते
उसकी माँ इन्जीनियर से क्या कम थी
जो पतली बांस की लकड़ियों से बाँध
पानी नहर से क्यारियोँ तक़ और खेतों से
घर तक पहुंचाती
माँ उसकी किसी डॉक्टर से क्या कम थी,
जो घरेलू उपचारों से ही
उसकी बीमारियों को दूर कर देती
वो ना वैध थी ना झोलाछाप डॉक्टर
पर नब्ज़ देखकर बिमारियों लो पहचान लती,
और प्राथमिक उपचार भी कर देती,
और फिर खाना पकाना,उन दलहन
के पकवान बनाना कोई उनसे सीखे
चीनी ना सही गुड़ ही सही
मैनें भी मिठाईयाँ बनानी सीख ली
क्या खेतों में, आंगन में
बर्तन के ढोल नगाड़े बजाना
और ऊँचे सुर में लोकगीत गाना
मैनें भी उनकी शागिर्दगी की
गम था,दुख भी, तक़लीफ़ भी
उन कष्टों ने मुझे पत्रकार बनाया
आज उस गांव की बदहाली को
खुशहाली में बदलने ली तस्वीरें
ऊकेरती हूँ अपने कलम से
माँ! मेँ मज़दूर की बेटी तुम्हारी सीमा
लेखिका कवियत्री
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
252,पॉकेट E मयूर विहार फेज़ 2,
पूर्वी दिल्ली 9910083047(म)
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23. अधिकारों पर पुस्तकों व कर्तव्यों का बोझ |
वो गाडिय़ा लोहार है,
यह कालबेलिया नर्तकी है!
वह 12 वर्ष का राकेश,
अपने सात भाई बहनों के संग रहता है!
खेलता है और काम करता है,
घुमक्कड़ जनजाति के हैं यह लोग,
खानाबदोश जीवन है!
रजनी 10 वर्ष की है!
अपने 8 भाई बहनो के संग नाचती गाती है,
सपेरों की जनजाति की है,
सांप पकड़ना भी जानती है!
दोनों यायावर समूह के है!
ऐसी अनेकों कहानियाँ हैं!
जातियों की, जनजातियों की,
पीढ़ी दर पीढ़ी यही करते आए लोगों की!
पिछड़े दलित मजदूर खेतिहर
किसानों की!
ग़रीबी में जीते भूमिहीनों की,शोषित वर्गों की!
सामाजिक कुरीतियों से जूझती
महिलाओं और बच्चियों की!
आर्थिक तंगी से तंगहाल पुरुषों की,
जो पुरुषोंउन्मुखि परिवार में!
सबकी जिम्मेदारियो की बोझ ढोने को, पैतृक कर्त्तव्य मानते हैं!
और तो और
आदर्शवाद व व्यावहारिक सोच की दुविधा में फंसी,
मध्यमवर्गीय परिवारों की!
उच्चवर्गीय दकियानूसी परिवारों में
पलनेवाली संतानों की!
स्वदेशी व विदेशी,पूर्व पश्चिमी,ऊंच नीच,वर्ग, आय,आयु,जाति खानपान के
भेद विभेद के चक्रव्यूह में
उलझी परिवारों की,
कॉन्वेंट सरकारी में
कमतर बेहतर मानने वाले,
बेहतरीन स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी में पढ़ाने की जिद्द,
शिक्षा लोन लेने के जद्दोजहद को तरजीह देनेवाले और सर्वोपरि मनाने वाले माँ पिता की,
उनके जन्मते ही फ्यूचर प्लानिंग वाली सोच क्या नन्हें बच्चों को अपने उस ढांचे में ढालने का
प्रयास वाजिब है,तानाशाही नहीं?
क्या इससे बच्चे की मानसिक आत्मनिर्भरता घटती है!
उनके स्वयं के सोचने व निर्णय लेने की क्षमता को रोककर
हम उन्हें क्या पंगु नहीं बनाते हैं?
जोकि गुलाम मानसिकता को बढ़ावा देती हैं?
क्या सामाजिक परिवेश उनकी अंदरूनी योग्यता को
पनपने और पहचानने से नहीं रोकता है?
क्या करियर के चुनाव में हम
भेड़चाल की भीड़ वाली मानसिकता के शिकार तो नहीं हैं?
क्या उसका दबाव
आज के नौनिहालों को,
पुस्तकों को बोझ मानने से बचा पाएगा?
सबके उम्मीदों पर खड़ा ना उतर पाने का भय
लक्ष्य से चूकने पर मखौल व उस नाकामियों की
हताशा निराशा विषादग्रस्त ना बना दे उन्हें
जिससे नकारात्मक सोच व ऊर्जा का जन्म हो
विषाद आत्महत्या जैसी प्रवृत्ति को भी बढावा देती है।
क्या यह उन्हें एक स्वस्थ नागरिक बना पाएगा?
बड़ों के नजरिए, उनकी इच्छाओं पर
अपनी इच्छाओं का भेंट चढ़ाना,
अपनी पसंद की करियर पर
अपने कर्त्तव्यों को प्रमुखता देना
क्या यह उन नन्हे मुन्ने जिंदगी पर ज्यादती नहीं?
आज भी बाल मजदूरी होती है,
केवल भारत में हो नहीं,दुनिया भर में!
कुछ गरीबी की बोझ तले रौंद जाते हें,
कुछ माँ बाप के निकम्मेपन की वज़ह से, कुछ पुरानी पैतृक परम्पराओं की वजह से!
आज भी बच्चे बिकते हैं,आज भी पटाखे, चूड़ियों की फैक्ट्रियों में जलते हें!
आंखें फेफड़े जलते हें!
आंखें फेफड़े जलते हैं प्रदूषण से
कानून संविधान में उनके अनुकूल है
पर जमीनी तौर पर आज भी सब हासिल नहीं!
आर्थिक तंगी से तंगहाल पुरुषों की,
जो पुरुषोंमुखी परिवार में,
सबकी ज़िम्मेदारियों की बोझ ढोने को,
पैतृक कर्त्तव्य मानते हैं!
मध्यमवर्गीय परिवारों की!
उच्चवर्गीय दकियानूसी परिवारों में
पलनेवाली संतानों की!
उनके जन्मते ही फ्यूचर प्लानिंग वाली सोच
आज भी खेल,नाटक,नृत्य,कला,संगीत, कार्टून कला,फोटोग्राफी,मूर्तिकला,सिनेमा के क्षेत्र को,
जीविकोपार्जन उपयोगी नहीं मानते,
इसलिए हमारे मंत्रीगण भी इसे स्किल की श्रेणी में रखते हैं!
इसे मुख्यधारा के पाठ्यक्रमों में
वो तव्वजो नहीं मिलता है!
ऐसे में घर के बड़े,
बच्चों को उन्ही विषयों को पढ़ने की सलाह देते हैं!
या कहूं तो अक्सर लोग अपनी पसंद व्यवहारिक बनो, कहकर थोप देते हैं!
क्या सही है, क्या गलत की सीख देते हैं!
अच्छा हो हम अपने नजरिए को समझायें,पर नन्हे मुन्ने को सब सीखने दें, जो वो सीखना चाहे!
मदद करें निर्णय लेने में जो बनना चाहे!
सम्भव हो तो एक गरीब को भी बनने में राह दिखायें!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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22. तुम बिन, नही तुम संग |
तुम बिन बीते 9 वर्ष,
2016 से 2025
तुम थे,अब हो नहीँ,
ऐसा कभी लगा ही नहीं!
हर पल वो पल मैने जिया है,
पहले से भी अधिक शिद्दत से,
नज़दीक पाया है तुम्हें,अपने में,
अपने संग,अपनों के संग !
बिटिया के संग,तुम्हारी माँ के संग,
तुम्हारे पिता भाई बहनों के संग
भूल गए होंगे वो तुम्हें, तुम थे कहकर, मुड़कर नहीं देखा होगा
तुम्हारे चेहरे के भाव को आखिरी पल,
कितनी शांति थी पीड़ा के सहने के बाद!
पर उस दिन के बाद हर दिन मौत की खबर पढ़ती हूँ मेँ!
कोरोना की, भूकंप की, बाढ़ की, सुखाड़ की,रेल के पलटने की!
प्रयास किया कार्टून बनाकर,
तुम्हारी तरह तुम्हारे साथ
बातों को अपने विचारों में बाँधकर सबतक प्रेषित करूँ!
कूची तो पकड़ना ना आया,
कंप्युटर से ही पहले की तरह
कोलाजतुन बनाकर उसे नाम दिया फिलहाल कोलाजटून ,
कविताएँ भी लिखी,तुम्हारे कार्टूनों की एक पुस्तक भी छपी !
सोशल मीडिया पर खूब दिखाया,
पर फिर भी लगा कुछ किया ही नहीं!
अब तुम ही बताओ क्या करें,जो तुम्हें करना था और कैसे?
मुझे पता है अपने देश और दुनिया का हाल देख कर,
तुम्हारी आंखें नम हुई होंगी,
नींदे उड़ जाती होंगी,
कूची पकड़ कार्टून वहां भी बनाते होगे, मुझे भी लगता है ऐसा ही!
क्योंकि मैं भी कार्टून कुछ ना कुछ बना लेती हूं तुम्हारी तरह,
फिर हम अलग कहाँ हैं,और कैसे हैं?
हम पहले से भी अधिक करीब हें!
घर परिवार समाज देश विश्व की बातें प्रेषित साथ करेंगे
वैसे ही जैसे हमेशा करते थे, बीच में गडबड हो गई थी ना?
अब ना होगी फिर कभी!हम हमेशा साथ चले थे, साथ ही चलेंगे!
आगे हर कदम,क्योंकि तुम बिन,
नहीं तुम तो हो,तुम संग!
विभा सुधीर उवाच!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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21. ऊर्जा का अति दोहन, मानवता का शोषण |
ऊर्जा का अति दोहन,मानवता का शोषण
ऊर्जा की ताकत मेरी मुट्ठी में,
ऊर्जा की ताकत तेरी मुट्ठी में,
माँ के आँचल में, मेरे घर के आँगन में
गाँव के पीपल में,चौपाल के बूढे बरगद में
नन्ही सी कोंपल में,तालाब में,जंगल में
ऊर्जा की ताकत,मेरी मुट्ठी में,
ऊर्जा की ताकत,तेरी मुट्ठी में,
शहर की सड़कों में,तड़क-भड़क में,
गाड़ी में,जहाज़ में,देश की आवाज में,
कैसे बचाएँ इसे,कैसे बढायें इसे
ऊर्जा की ताकत मेरी मुट्ठी में
ऊर्जा की ताकत तेरी मुट्ठी में
हवा मेँ, मेरी सांसों में
कन्न कन्न में समाई अपार ऊर्जा
तेल के कुओं में
नदियों के धाराओं में
खानों खदानों में
सूरज की तपन में
कन्न कन्न मेँ समाई
अपार ऊर्जा
ऊर्जा के बिना जीवन
सिर्फ है एक जंग
ऊर्जा नहीं तो जीवन
रसहीन है और बदरंग
ऊर्जा का दोहन
अपना ही है शोषण
बिगड़े पर्यावरण
फैलता है प्रदूषण
ऊर्जा के बिना जीवन
रसहीन है,बदरंग है
सबको मिले ऊर्जा
ऐसा हो इंतजाम
ना हो इसकी किल्लत
ना बढ़े इसका दाम
इसकी कीमतों से एंटी हुई ढीली
जनता के चेहरे
त्रस्त और हुई पीली
ऊर्जा की ताकत,मेरी मुट्ठी में
ऊर्जा की ताकत,तेरी मुट्ठी में
कण कण में समाई है
अपार ऊर्जा !
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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20. Worldview from my home |
Cop27 concluded this month
With messages of emergency,
In climate change front
It's various variants viruses as side effects,
Its repercussions on Mother earth,
On ozone layers,on oceans,In ecology,
On economy,on the layers of atmosphere,
On environment,on health,
On wealth,on psychology
On water,on grains,
Green gas omission was great concern
Usage of fuels,coal mining,oil digging,
Recycled,renewable energy,Its sustainability
Its ecofriendliness,Its viability,Its development
Its supply,Its easy excessesbility,its awareness
Its financial aspects,curbs,subsidies,
roadpath
Routes and obstacles,barriers,and boundaries
How to overcome it,how to find solutions
But they forgot to discuss natural disasters as
One of the big problem and how to control it?
And thus on final day of it,Big earthquake in Jawa
Indonesia jolted them out to speak on it,
To make effort about it more effectively,
How to act faster to prevent natural disasters,
To control it, to cure ! To make it happen less
About disasters control and managing funds for it!
God knew!How to remind their human kids,
About man made disasters and natural disasters!
Dr. Kalamshri Vibha C. Tailang
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19. नया भारत |
तैयार रहना,
अबकि होली आए तो,
हमेशा की तरह,
रसायनिक
या हर्बल नहीं,
फुलों से बने रंगों के संग
रंग देना उन सबको,
जो दिल में मलाल लिए
बजट में महंगाई बढ़ा कर के,
आम जनता का जीना मुहाल कर के,
मिठाईयों का स्वाद हमेशा की तरह
फीका करके, पानी की किल्लत है....
सूखी होली खेलो कहलवाकर के
होली की बधाईयाँ देते रहे हैं
जय हो!जय हो!कहकर
पल्ला झाड़ते रहे हैं!
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औरों के साथ साथ,स्वयं को भी
तराशना तो, कोई गुनाह नहीं,
खुद की खूबियों को,
पहचानने का सफर,
लम्बा हो या छोटा,
पहचान में आ जाए, तो निखर कर
किरणे, रौशनी,
फैलाना तो कोई गुनाह नहीं
मैं नहीं कहती,
सिर्फ तारीफ के लिए ही कदम उठाओ
पर गर तारीफ हो जाए
तो कोई गुनाह नहीं!!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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18. माँ की ममता |
माँ की ममता अनमोल है.
उनके प्यार का कोई तोल नहीं
उनके थप्पड़ में कोई झोल नहीं
स्नेहसिक्त वचन हो
या कर्कश तीखापन
मिर्ची सी बोल भी लगे मिस्री सी
माँ तो माँ ही होती है
ममत्व जिसका कालजयी
जो प्रेममय था ,है ,
और सदाबहार रहता है
माँ राजरानी हो या ,मजदूर गरीब
क्रमशः --
बच्चों का भला जो खुद को भूलकर सबसे पहले चाहे,
यह निस्वार्थ त्याग भावना भला और
कहाँ,किस्मे दिखी??
देश,समाज,जीवन परिवार बोली भाषा
लोकोक्तीयों कहावतों गीतों
लोकनीतियों की बारीकियों को
इतिहास के किस्से और ग्रंथों के श्लोकों को
कहानियों में बिंध
नैतिकताओ,रीति नीतियों को
खेलते,खिलआते,
हँसते,रुलाते,
उठते,बैठते,खाते,पीते,नहाते,धोते
हर रंग और रुप को ,
उसके सतरंगी नवरुंगओ को
वोह कब सिखाती है
मालुम ही नहीं पड्ता,
स्कूल कालेज
डिग्री कमाई व्यवसायिक ज्ञान
सब फीकी पड़ जाती है
एक माँ के व्यवहारिकता के
उन पाठो को याद करो
जिसमे
पिता की सिध्दांतों का
जामा चढा
होता है
बस हम उन पर अमलीजामा
नहीं पहना पाते
वह हमारे बुद्धि की फेर है
नीयत और नियति है
आज के फेर में हम बीते कल को
भुल जाते हें
नये पर पुराने का घोल नहीं करना चाहते
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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17. अप्पू की रेल, गप्पुवाली रेल |
छुक-छुकु करती रेल चली
बच्चोंवाली रेल,दिल्ली में था
वोह आप्पुघर,उसमें भी थी
छोटी सी रेल,बच्चों वाली रेल,
रंग बिरंगी चित्रोंवाली ,गुड्डे गुड्डीयों,जानवर,पक्षियों,
लप्पू की ड्रॉइंगवाली,
पहाड़ों-नदियों कि तस्वीरोंवली,
गाने के धुन की सीटीवाली,
धुंआ की,बिजली की ,कोयले की
हरे -पीली,लाल,नीली,काले,सफ़ेद झंडेवाली,छुकछुक-छुकछउक करती
बच्चों की ट्रेन चली,अंदर झांकी दिल्ली
की है,बाहर पंजाब की,बगल में हरियाणा की है,और यू पी,राजस्थान की,ट्रेन नहीं इतिहास है इसमें, भारत-पकिस्तान की,
बंग्लादेश की झलक भी दखौ,
पूरे विश्व -जहां की!
यह ट्रेन है,बच्चों का या म्यूजियम?
कितना ज्ञान बढाता है!
कार्टूनों से पटा चित्रपटल सा
इसका बोगी अंदर और बाहर पूरे देश के किस्से सुनाता है,दखौ लगता 26 जनवरी की झांकियों सा अप्पु का रेल
जब निकलता है,सब ताली बजाओ,सैल्युट करो,जब रेल सीटी
बजाते निकलेगी,हम सब ज़ोर ज़ोर से
संग संग गाएंगे,अप्पु की रेल में बैठ
कविता जुगलबंदी सुनायेगे,तो सब गाओ-"आप्पू की रेल चली,आप्पुघर में,आप्पू की रेल चली हमारे दिल में,देश-राष्ट्रीयता की कहानी सुनाती,
पूरे विश्व-जहां के झांकी-दृश्य,कार्टून में दिखाती,सीटी बजाती,यह चली रे चली, छुक-छुक ,छक छक पीन्ं-पी
अप्पु की रेल,बच्चों के संग अप्पुघर में
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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16. गर में आप्पू होती |
गर में आप्पू होती!आप्पू घरवाली!
नहीं ! कोई भी आप्पू,
लाल-लाल हाथी
सुधीर तैलंग के कार्टूनवाला हाथी
मायावतीजी के चुनाव चिन्हवाला हाथी ,
हमारे आई टी ओ में
"शहर घुमानेवाला हाथी
जिनपर मेने लेख लिखा था-
"यहां हाथी रहते हें",
सान्ध्य टाइम्स के लिए,
आप भी लिखना।
और केरल में पूजा करते हें,
वोह हाथी,
जिसे मन्दिर में रखते हें-
अपने गणेश जी की तरह,
उसकी सवारी भी करते हें
लोग उन्हें खूब लडू-केले खिलाते हैं
खूब प्यार करते हें,उनसे आशीर्वाद भी लेते हें उसके साथ नाचते-गाते भी हेँ।
पर इन महवतों से कहना,किसी भी
हाथी को भाला ना चुभोये,
उन्हें चोट लगती है,
महावत आप्पू आपकी बात मानेगा,उसके गर्दन में
भाला चुभोने से दर्द होता है,घाव नासूर बनेगा।अप्पू मर जायेगा।
वोह अप्पू जो राजा महाराजाओं
की है सवारी,
वीर योद्धाओं की सवारी,
सनिकों की है सवारी,
और तो और, सब बच्चों की है सवारी,
वोह भी तब, जब वीरता पुरस्कार विजेता बच्चे 26 जनवरी को
झांकियों के साथ सजे हुए
हाथी की सवारी करते हें।
गर में भी अप्पू होती,
आप सब बच्चों को
पीठ पर लाद कर सवारी करवाती
और सब तालियां बजा कर कहते
वोह चली आप्पू की सवारी
हम बच्चों के संग,
वोह चली, रे वोह चली।
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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15. यह दीपावली की शान |
दीपों की शृँखला से जगमगाते
घर-आंगन,गली,मुहल्ला,समस्त शहर
बिजली के छोटे बल्ब,
मोमबत्तियाँ आकाशदीप,
फटते जलते फूलझडी पटाखे।
रंगोली अल्पनाओं और तोरणं से
सजे द्वार खिड़कियां,
पूजा घर में बैठकों की सजावट
सुन्दर गद्दे-गाव तकिये कुशन
झिलमिल करता-लक्ष्मी गणेश व रिदधि-सिद्धि,की मूर्तियों का शृंगार
बच्चों बड़ों के नये कपड़ों गहनों से
खुशनुमा माहौल,पकवानो मिठाईयों
विविध व्यंजनों पर टूटते घरवाले मेहमान पर ना भूलना उन गरीब
मजदूर किसान दीन हीन भिखारी
दुखिया बीमार बेकार लाचार अपंगों
को जो खुद के बूते त्योहार नहीं मना
सकते।अपनी खुशियों में उन्हें भी
अपना हिस्सेदार बनाये।
स्वयं की हंसी
किलकारियां उनकी मुस्कुराहट भी ला
दे तो इंसानियत जीवित रहेगी।मानवता बनी रहेगी ।
यही दीपावली की शान है।
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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14. सुधीर की पतंग कार्टूनवाली |
सुधीर की पतंग कार्टूनवाली,
मेरी पतंग कवितावाली,
वो देखो, आसमान में उड़ती पतंगे,
नहीं किन्ने,
ये किन्ने क्या होते हें?
हम बीकानेर में इसे किन्ने कहते हैं?
अच्छा! कितनी सुन्दर हें ना,
अरे,वो तो ड्रैगन जैसी है? है ना?
यह ड्रेगन क्या होता है?
वो! कार्टून फिल्मों में देखी थी ना?
हाँ! मेँ तो अच्छीवाली पतंग अबके बनाऊंगी,
उसमें डोनाल्ड डक, वो टिनटिन
सब के चित्र चिपका दूँगी।
मैं तो अपने कार्टून
फिलहालवाले दर्हियल झोलाछाप
जेनयूवाला खादिधारी कार्टून किरदार
को पतंग बना दूँगा।
हाँ! वो तो मज़ेदार है,
ऊपर भगवानजी का कार्टून बनाएगा!
बड़ा मज़ा आयेगा,
तुम कार्टूनवाला पतंग बनाओ,
मैं तो उस पर
दोहा-मुक्तक़-कविता-चार लाइनें
लिख दूँगी।
वह! अर्ज करते हैं कि-
पतंग की डोर,नाज़ुक पर धारदार होती है!
गर दूसरी पतंग को लगे तो,
वो तो कटी,
पर गर कबूतर टकराई,
उसको लगे, तो वो तो गई
देखो! पतंग वहीं उड़ाना,
जहां चिड़ियों का ना हो
बसेरा, घरौंदा, घराना,
ना वहाँ कौआ-कबूतर,
चिड़िया,हुदहुद, बस्तर्द,चील,बाज उड़े,
ना उनका रास्ता पड़े।
आसमान में सतरंगी
इंद्रधनुषी नवरंगी टंकार
अच्छी लगे
पर जीव हत्या हो तो,
सिर पर आसमान से बिजली गिरे,
अरे,वो गाज गिरे! समझते हो?
बूंदा-बन्दी होय तो,
ऐसे मेरा दिल रोए।
ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ।
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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13. तुम्हारी पतंग कैसी है, ज़रा दिखाना? |
तुम्हारी पतंग कैसी है,ज़रा दिखाना?
क,ख,ग,घ,लिखी है ना?
एक,दो,तीन,क्यों नहीं?
अच्छा लिखता हूं,पर मैं तो
ए,बी,सी,डी,भी लिखूंगा,
वन,टू,थ्री,फ़ोर भी,आ,औ,भी
और गणेश भी बनाऊंगा!
किस कलम से बनाया है,
नहीं! ये स्केच पेन ड्रॉइंगवाला है।
अच्छा!बना लिया ज़रा दिखाना?
औह!बहुत सुन्दर डिज़ाइन !
और यह पतंग बनवाई किससे?
नहीं रे बाबा! मैनें खुद बनायी है?
कसम से! दीदी से पुछो!
गजब!ये पतंग तूने खुद बनायी है?
पर कैसे? अति सुन्दर!
कुछ नहीं बस भैया से अखबार लेके
दो पन्ने लिए, उसी को मोड़कर बनाया।
वो दीदी ने आटे की लोइ बनाकर दी,
वो गोंन्द खत्म हो गयी थी ना?
किसी को बताना नहीं,
मैंने सींकवाले झाड़ू से
3-4 सींकें निकाले थे।
माँ डांटेगी, गर पता चला तो?
देखो ना? बन गयी ना मेरी पतंग!
ए,बी,सी,डी, गिनती,कहकहरा,
सब तो लिख दी आड़ी तिरछी,
रंग बिरंगी अक्षरें, स्केचपेन से।
हाँ! बड़ी अनूठी बनी,
सबको अच्छी लगी।
अब चलो,पतंग उडाए।
पर सुतली ??
वो! पुराने पतंग की रखी है ना!
बाबजी ने दिलाई थी,
26 जनवरी को,
तभी की रखी है,
लेकर आता हूं।
अच्छा! देखो ऊपर इन्द्रधनुष!
क्या,उससे ऊपर तुम्हारा पतंग उड़ सकेगा?
हम्म!ये उड़ी ना छ्मच्छम!
मैंने इसमें दो घुंघरू के दाने भी
लगाए हें।
झ्म्झम्मंझं,झूम,झम्म्मंझं,करती
मेरी पतंग उड़ी रे,उड़ी रे,उड़ी रे।
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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12. कटी पतंग |
वोह कटया,कटी रे कटी,
तेरेवाली पतंग कटी,
ना!ना! मेरी वाली नहीं
वोउसकी पतंग गयी!
हाँ! अरे हाँ! कट गई तो गई,
चलो!भागो,दौड़ो,लूटो,
किसके हाथ आई कटी-पतंग
सुन्दर है ना? गुलाबी रंग की
नहीं मैंने लूटी वो तो
लाल,पीली,नीली,है रे!
वासन्तोसव हो या 15 अगस्त
हमारे बीकानेर में पतन्गों से आसमान
सितारों सा सज़ा, पटा होता है
हाँ! वो तो हमारे बरौनी में भी
होता है, पर यहां ज़्यादा सुन्दर है।
स्वपनिल सुन्दर तितलियों के पंख सी
जो बारिश की ज़रा सी बूंदा बन्दी में,
नाज़ुक पंखुडियोँ सी उघड़ जाती हैं,
पर फिर भी इस स्वर्गिय माहौल में
बच्चों व बड़ों की किलकती आवाज़
गुन्जयमन होती है,
स्वरगिक आनन्द देती-सी वो स्वर!
वो काटया, अरे काटया,
अरे उड़ी,अरे उड़ी रे उड़ी,
मेरी पतंग, सबसे ऊपर उड़ी
वो! लपटो रे, और ढील ना दो
वो! कटी पतंग,
लूटो,लपेटो,काटो,वो काटया
वो लूट ली,मैनें पकड़ी पहले,
ये मेरी, वो तुम्हारी-कटी पतंग
सुन्दर है ना!वो काटा!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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11. समझौता: जीवन में, जीवन से |
बेटियाँ खास होती हैँ!
बेटियाँ खास होनी ही चाहिए!
बेटियाँ शक्ति रूप हैँ!
उन्हें सशक्त होना चाहिए!
बेटियाँ जीवनदायिनी है!
उन्हें ममतामयी होना चाहिए!
बेटियों को सर्वगुण संपन्न बनाना है!
यह दायित्व किसने, किसे दिया?
इसकी परिभाषा किसने गढ़ी?
इसके मापदंड किसने गढ़े?
कौन तय करता है समाज की
स्वाभाविक प्रक्रियाओं को?
सामाजिक परिस्थितियों को?
जो हर दस कोस बाद बदली हुई
दिखती हैँ खान -पान, रहन -सहन,
तौर तरीके, बोली -ज़ुबान में!
किसने चाहा उसकी मन की सुनना,
किसने चाहा उसकी चाहत क्या है?
देश हमारा स्वर्ग सारीखा,
इसका मान बढ़ाना है!
पर अपना और अपनों से प्यारा,
दुनिया में कौन हमारा है?
मान माँ पिता का बढ़ाऊं तो,
क्या देश का मान बढ़ता है?
तिरेंगे का गुणगान गाऊँ तो
परिवार किनारे हो जाता है?
यह लिखा जब बच्ची थी
'क्यों बिटिया जन्म निभाना है?'
क्या निभाना शब्द समझौता है?
क्या सहना शब्द समझौता है?
परंपराओं की ओढ़नी से,
सिर ढके घूँघट की आड़ से
तकना समझौता है!?
घर की चक्की झाड़ बुहारी
स्कूल के बस्ते पर हो भारी!
तो मन के चाहना को
सर्वोपरि रखना
क्या यह हरकत बगावत है?
या समझौता है?
मन के उमंगों को,
छलांगो को
लक्ष्यओं को
महत्वकांक्षाओं को,
दरकिनार रखना!
मन की ना करना,
मन की ना बोलना
मन की ना खाना,
मन की ना पहनना!
मन मार कर जीना!
और इसे जीने की
आदत मान लेना!
क्या हरकत पलायन है?
परिस्थितियों से?
बलिदान है औरों के प्रति
अपनों के लिए जीना कहकर
या इसे त्याग मान कर
या फिर यह समझौता है?
पैरों के पायल जब गूँजी,
हाथों की चूड़ियाँ जब खनकी,
हंसी कि खिलखिलाहट से तंग आयी
"रूठी माँ ', को समझाना,
क्या यह भी समझौता है?
ऊँची आवाज़ ना देना,
यह है बिगड़े बोल बगावत के!
किसी की बदतमीज़ी पर ना लड़ो,
ना थप्पड़ वापिस मारो,
ना बचाव में शोर करो,
चिल्लम चिल्ली, ना पुलिसगिरी,
चुप रहकर नज़रअंदाज़ करो!
कोर्ट, केस, कचहरी के चक्कर से परहेज
जेब कटने से बचाएगा,वर्ना
सालों चप्पल घिस कर भी
ना हाथ सोल्यूशन आएगा!
कोर्ट समझौता करवायेंगे,
पूछेंगे बड़ों ने नहीं रोका?
ना समझाया तुम्हें?
एड़ियां रगड़ कर भी
समझौता ही पल्ले आएगा!
क्या सहनशीलता की क्षमता ही उसे
सर्वगुण संपन्न बनाता है?
क्या समझौता करना
उसको
जीवन में
केवल झुकना ही
सीखलाता है?
समझौता पसंद की पढ़ाई में !
समझौता पसंद की सगाई में!
समझौता पसंद के कॉलेज के चुनाव में, महिला कॉलेज हो तो सही!
अपना शहर हो तो भला!
समझौता पसंद के शहर में,
पसंद के रहन सहन में,
कपड़े आधुनिक माडर्न हों
या पुरातन तालिबानी
मोबाइल कंप्युटर स्कूटी गाड़ी
चलानी आए तो भला
उसके माडल के,कंपनी के चुनाव में
विविधता में समझौता
नौकरी,शादी,स्वयंवर
चुनाव के सफरनामा में अगर
समझौते की परिभाषा को garh लें!
एक मापदंड तय कर लें तो
जीना आसान हो जाएगा
पर फिर हर सामाजिक वर्ग
हर क्षेत्र,हर धर्म,हर रुचि
हर प्रदेश व हर देश और
विषय वस्तु की पृष्ठभूमि के अनुसार
व्यवहार की अपेक्षाओं
समझौतों की पराकाष्ठाताओ को भी
तय और स्थिर करता है!
जीवन के सफरनामें में,
अगर समझौते की परिभाषा
को तय भी कर लें सोचो
जीना आसान हो जाएगा!
पर फिर भी क्या
बेटों के लिए इसके मापदंड अलग
और बेटियों के लिए अलग ना होंगे?
यहाँ बहुओं की बात तो क्या कहें?
पर आखिर बहू भी बेटी ही होती है!
उन दामादजी की तरह घर के जो बेटे समान होते है!
हर सामाजिक वर्ग, हर लिंग के,
हर वर्ग के, हर रुचि के,
हर प्रदेश के, देश भर में
विषय वस्तु की पृष्ठभूमि के अनुसार
व्यवहार की अपेक्षाएं हैं बेटियों से?
जोकि समझौतों की पराकाष्ठाऔ
को भी तय करता है!
बेटियों के लिए अलग
बेटों के लिए अलग!
बराबरी का दर्जा तो तब हो
जब हमारी उम्मीदों के दबावों से
बेटियों के स्वाभिमान पर आंच ना आए
और शांति सौहार्दता रिश्तों की भी बनी रहे!
यह ठीक ऐसे ही है
जैसे सरकार पेट्रोल डीजल
की कीमत बढ़ाए,
और देश में सौहार्दता बनी रहे!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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10. मापदंड के तराज़ू |
मापदंड के तराज़ू
बेटों के मापदंड अलग,
दामाद के लिए अलग,
बेटियों के लिए अलग,
बहुओं के लिए अलग,
क्यों रिश्तों के अलंकरण से
व्यक्तियों व उसके व्यक्तिवों को
तोला जाता है!
बेटियां ही तो माँ भी होती हैँ,
और सास भी, बहू, ननद,
और भाभी भी
ऐसा ही पुरुषों के साथ भी होता है,
घर में भी और बाहर भी
फिर भी कठपुतली की डोर की तरह
हम उलझे ही जाते हैँ
फिर उलझन की सुलझन की तलाश,
हर बेटियों की ज़िम्मेदारी होती है
आखिर
पूरे समाज का ठेका,
उनके कंधों पर जो है?
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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9. शायद |
यवनिका डाल ले जब समय बरबस
उन क्षणॉ पर
जो बीते हैँ साथ चलते काफीलों में
याद कर लेना
किसी निस्तब्ध रजनी में
विगत की रेत पर
सोये पड़े पदचिन्ह
तब तुमको शायद
ज़िन्दगी का अर्थ दे देंगे!
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग
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8. तुम्हारी ख़ामोशी! (रूठने-मनाने का दौर) |
वह स्वर्णिम काया
मटमैली हो गयी
वे उल्लासित नयन
बुझ -बुझ से गए
झिलमिलाते रहे
कुछ बूँद आंसू
होंठ बुनते रहे
मौन की वह चादर
जो हमारे बीच तन गई!
संगीत मौन हो गया
सुरों की वह झंकार
तुम्हारे शब्दों की वह प्रतिध्वनि
इस अंधकारयुक्त व्योम में
विलीन हो गयी!
तुम्हारी ख़ामोशी की तरह वह प्रतिज्ञा
मेरे अंतर को कहीं
अंदर ही अंदर बिंध गई
फिर भी
चुप्पी!ख़ामोशी!
वही मौन
वही सनाट्टा!
दिल ढूंढ़ता है
न मिलनेवाली उस छाँह को
हाय रे!
क्या करूँ इस नियति की दीवार को!
सब कुछ मौन है
मेरे जीवन -संगीत की तरह
सब संसार
सन्नाटे में विलीन
आज फिर वही
सम्पूर्ण व्योम को ढकती ख़ामोशी की वह चादर
शायद मेरा जीवन यही है!
तुम्हारे पहले के छाँह तले
तुम्हारी खुशबु में बसें वह क्षण
तुम्हारा वह मधुर स्पर्श!
तुम्हारे वे बोलते नयन
उन्हीं चंद अनुभूतियों को
जीती रहती हूँ हर क्षण
मुझे अपनी तन्हाई से प्यार है
उन आँखों की ख़ामोशी
उनमें छिपी असीम व्यथा
मेरी कलम लड़खड़ाने लगती है
लगता है कहीं शब्दों से
उन भावों को छोटा न कर दूँ
अपने प्रेम को
किसी भाषा का परिधान पहनाकर
कहीं अपवित्र न कर दूँ!
एक झोंका खुशबू का
चंद एक टूटे एहसास
स्मृतियों के सैलाब
तैरते हैँ!
जलती आँखों में
कभी कभी मैं भीग जाती हूँ!
रात की ख़ामोशी
शोर बहुत करने लगी है
विगत स्थितियाँ
जीवंत हो
वर्तमान बन गई है
अश्रु बूंदों से
ह्रदय का उपवन
रिस-रिसकर
पक गया है
पीड़ा निगल गई है
सम्पूर्ण अस्तित्व को!
कलमश्री विभा सी तैलंग
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7. परिचय |
लप्पू की तीसरी नज़र सीरीज प्रथम भाग -50पन्ने,50पत्ते कलमश्री विभा सी तैलंग के लिए कृतिओं का एकल संकलन
लप्पू की तीसरी नज़र सीरीज प्रथम भाग -50पन्ने,50पत्ते
कलमश्री विभा सी तैलंग के कृतिओं का एकल संकलनसन 1984 से 1986 के बीच लिखी गयी कविताएं श्री सुधीर तैलंगजी को समर्पित
प्रथम परिचय के वे सुन्दरतम क्षण यों ही भूल नहीं जाना
वह इत्तफाक था एक -कहकर मन मत बहलाना
उस क्षण तुम मूर्तिवत से, मुझे भ्रमित कर खड़े रहे,
दिल धड़क उठा, खुला राज, तुम लगे मुझे पहचाने से
मादकता -सी तरल हंसी, लबों पर बिखरी -बिखरी
दिल खिल उठा जिसे देख, अधर चूमने को मचली,
देख सजग सुप्त सौंदर्य मणिक से, ये चंचल चपल नयन तुम्हारे
मैं व्याकुल परिरंग -मुकुल में बदी-अलि -सी कांप उठी!
सच!उन नयनों के ख्याल आते ही दिल में एक सुखद
कम्पन की अनुभूति होती है!ये नयन ही मेरी प्रेरणा हैँ, ओह!
सच!उन नयनों के ख्याल आते ही दिल में एक सुखद
कम्पन की अनुभूति होती है!ये नयन ही मेरी प्रेरणा हैँ, ओह!मुझे मेरी मंज़िल दिख गयी!
मैं बहुत खुश हूँ!जी चाह रहा है 'महादेवी 'की तरह मैं भी गाऊँ -
मधुर -मधुर मेरे दीपक जल
युग -युग प्रतिदिन-प्रतिक्षण-प्रतिफल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
मुझे तुम्हारे अतीत में डुबकियां लगाकर गहराई मापने की कोई
लालसा नहीं क्योंकि अभी तुम जैसे भी हो मुझे प्रिय हो -तुम मुझमें
प्रिय!
फिर परिचय क्या?
अब तो मेरी हार्दिक इच्छा बस एक ही है कि मैं आजीवन, अनवरत, अविलय
निराला बन मानती रहूं -
मुझे विश्व का सुख,श्री, यदि केवल
पास तुम रहो!
कलमश्री विभा सी तैलंग
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6. अब कब तक सहेंगे |
आतंकी गतिविधियों में शहीद हुए और घायलों को समर्पित 1984 से पहले व अब तक
अब कब तक सहेंगे??
और अब कब तक सहेंगे...??
आतंक के साये में और ना जीएंगे!!
यह शुरुआत है एक जंग,
हर गलत के खिलाफ
जो हाथ मारने को उठे निर्दोष को
वो रोक दिए जाएंगे!!
आतंक मन पर हो या तन पर
अब और ना सहे जाएंगे,
अब और ना सहे जाएंगे
हमारी मनशक्ति भारी पड़ेगी
उन सब हथियारों पर
यह आनेवाले हर दिन में साबित कर बताएंगे
हम सिर्फ बातों के धनी
कागज़ के शेर नहीं
हम अब और ना सहेंगे!
आवाज़ रोज़ उठाएंगे और
इससे साबित कर बताएंगे??
कि पार्लियामेंट हो या देश का
कोई भी हिस्सा
अब हम आंतक के काले साँप को
मन पर भी नहीं छाने देंगे!
हम तैयार हैँ किसी भी
जाँच परख के लिए!
पर अब और कब तक सहेंगे....
अब और कब तक सहेंगे???
भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान,
चीन, अमरीका...
जो भी हो जवाब चाहिए???
अब हम आतंक के साये में
और ना जीएंगे??
यह है शपथ!! यह है शपथ!!
आतंक, नक्सलवाद, उग्रवाद
चाहे कोई भी वाद हो
उसके "हिंसा " के आग में
शहीद हुए और जो उसके शिकार हुए
उन सबको मेरी श्रद्धांजलि
मेरा तहे दिल से सलाम!
कलमश्री विभा सी तैलंग
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5. World Peace and War |
Whispering of wind
In whistling woods
Moonlit night of newyear
12o'clock bell announced
Of near by church and
Sleeping birds chipped
As if they knew a new dawn is
Few hours away....
Blessing,Health,Peace,and Prosperity
Are the words World needed,but
Put in and Zelensky had
Something else in mind
(NATO and Biden,G-7 and India are catalysts
Watching,reacting,warning,provoking??)
Are they trying to make the Peace!!??
Humanity is anxious!!)
20 February 2014 was the day
Russia invaded Ukraine
As they could not digest history of
USSR split into many
And making of their next bigger
"U" Raine SSR," named rebel and independent neighbour on 24th August 1991
Psychology behind it was same as
It was after partition of India on 15th August 1947
And creation of Independent Pakistan
P A day before
It was after partition of India on 15th August 1947
And creation of Independent Pakistan
A day before ,and then making of Bangladesh in 1971
And now on 24th February 2022
Russia launched full scale invasion
Of Ukraine mainland and reached till
It's capital...kyiv
As their hostility aggravated since 2014
Ukrainian revolution of dignity,
With support of Europe
After annexation of
Creamea and part of Donna's
from Ukraine
Which is illegal act
They are internationally
recognized part of Ukraine .
The way East Pakistan
was axed
from west
Pakistan,
As an Independent Bangladesh
in south Asia
with support of sandwiched India
Thus Jammu and Kashmir problem aggravated
Leh and Ladakh has made roadway
To China fron Pakistan.
China captured our Kailash mansarovar Land,Tibet problem escalated.
(We all know, Dalai Lama underground
Went in exile in India)(1959/31/march)
Created shadow Tibet in Dharamshala city
Of our Himachal Pradesh state,
In 1984 he tried once to visit Tibet
But Chinese Military stopped him)
Pakistan occupied Kashmir is our Land
Recognized as Indian territory
But illegally annexed by our neighbour Pakistan
Who are supporting Islamic jihad terror outfits there
Now they have joined mainstream politics of Pakistan,
As a political party in their elections now
So as illegal immigrants of Bangladesh
"In northeast, west Bengal and Bihar
Who has supports of
"Huji" jihadist terror outfits and naxalite
(We all know organizations like-SIMI
In madhya pradesh,Chattisgarh and IM@indian Mujahideen in uttar pradesh
Are local terror outfits helping,
Grooming,guiding and has terror links..
Are getting monetrally and ammunition helps from these naxalite groups
And terrorists groups from outside our border countries
Like Pakistan Afghanistan,Nepal,China,Bangladesh,Myanmar
Rohingya's etc,some are called extremists also)
Putin is backing Pro-Russian separatist fighters of Donetsk People Republic
And the Luhansk People's republic
In war Who are fighting Ukrainian Military
In an armed conflict for control over eastern Ukraine.
Thoughts are flowing like a free wind and stream
Turning to be a storm or Hurricane
Destructions and devastation.
Pain,cry anguish and ambitions
Can't go hands in hand
But this is one reality of life
Russia has their own reasons to fight
Ukraine has their own reasons to resist
Both are offensive and defensive??
Just see who all play the Catalysts??
Let's pray that Peace must prevail
In time of when we are fighting against
Epidemic corona,worldwide....
We do not need...
War to became endemic!!
Kalamshri Vibha C. Tailang
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4. रिक्तता का दु:ख |
हर रोज़
देखती थी
पेड़ में लगी
उस डाली को
आज वह नहीं है
और
उसके स्थान पर
एक आपरिमाणित
शून्य पसर गया है
वह स्वयं ही
टूटकर गिर गई होगी
पिछली रात
क्योंकि, सूखी डाल का टूटना
या पेड़ से लगे रहना
समानार्थी परिस्थितियाँ हैँ
फिर भी, मुझे दुख है
मैं यह जानती हूँ
यह दु:ख
सूखी डाली के टूट जाने का नहीं
बल्कि उस रिक्तता का है
जो किसी की भी शाश्वत
अनुपस्थिति से
निर्मित / उत्पन्न होती है!
कलमश्री विभा सी तैलंग
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3. हमारी आँखों में ख़्वाब है, विषाद भी, पीड़ा भी |
15 अगस्त 2022,
हर वर्ष की ही तरह
स्वतंत्रता दिवस का फिर आगमन हुआ,
लाल किला के प्राचीर से
उमीदें जगाई गयी
सपने जगाये गए,
हर साल क़ी तरह
कुछ पुराना गिनाया गया
कुछ नया बताया गया
कुछ सच था, कुछ अर्धसत्य था
कुछ कपोल कल्पना, हमेशा क़ी तरह
जिसे हम हाइपथेटिकल कहते हैँ,
यानि संभावित बातें,
बड़ी बड़ी संभावनाएं जताई गयी
छोटे छोटे कदम भी सुझाये गए!
यह 'नया भारतवाली बात थी ',
युवा भारतवाली, यंग इंडिया,
जवान हिंदुस्तानवाली'......
पर इस घोषणाओं के पिटारे में
महिला, पुरुष, बच्चे, बूढ़े,
अर्धनारी, अर्धपुरुष,
सबके लिए दीवास्वप्न के जुमले थे!
और फिर मिडिया क़ी परिचर्चाएं,
उटोपिया क़ी परिभाषा पर विचार विमर्श
मैं सुबह उठी थी, देखा
उगते सूरज क़ी लालिमा
मात्र आँखों को सेंकती ही नहीं
उसकी अरुणनीमा ऊर्जा देती है
फ़िज़ा मैं हौले -सी बहती,
बयार के स्पर्श का एहसास,
मेरे अंतर्मन को,
तर करता गया!
आज क्या है यह रुमानी दस्तक़,
जो वक़्त के करवट बदलने का
आगाज़ -सा लगता है
यह पूर्वांभास
मेरी नासिकओं में
भीगी मिट्टी क़ी
सोंधी खुशबू क़ी भांति
समाती जा रहीं है,
रोमांचित हो गयी हूँ में,
वर्तमान का पल,
कल
इतिहास बन जाए,
सोचती हूँ,
उसे शब्दों और लफ़्ज़ों के
सांचे में ढाल कर
बिखरने से बचा लूँ!
वक़्त,
मुट्ठी में बंद रेत क़ी भांति
फिसल जाए,
उस से पहले
बदलते हवाओं के
रुख को संभाल दूँ!
सोचती हूँ, आज कुछ नया करूँ,
सबको साथ ले कर
"एक नये पहल " का एलान कर दूँ,
यह ईज़ाद 'आज़ादी का ',
दूसरी आज़ादी क़ी लड़ाई का आगाज़,
अनुठे और नये अंदाज़ में
नया भारत, इंडिया, हिंदुस्तान के लिए,
यह कन्हैय्या क़ी आज़ादी नहीं
तमाम बुराइयों के जड़
अशिक्षा से आज़ादी
बेरोज़गारी से आज़ादी
कुरीतियों से आज़ादी
अपने आसपास होनेवाली
हर सामाजिक विकारों से आज़ादी
आसमाजिक दुराग्राही, आतंकी
अपराधों से आज़ादी
नाकामियों से आज़ादी
उपलब्धियों के अवरोधकों से आज़ादी
गिनती अनगिनत है,
पर बेड़ियों के संग आगे बढ़ने क़ी आज़ादी,
व्यवस्था में सुधार क़ी आज़ादी
इस साल क्या नया आयाम जोड़ सके
आधुनिककरण के दौर में
पारम्परिक का परित्याग किये बिना
उसे परिषकृत कर
आगे बढ़ने क़ी आज़ादी!
ओ!विषाद क़ी आत्मा,
इस लोक में मानवी आसुओं
का कोई अंत भी है?
अथवा कि उन विशाल आँखों में
अब भी वैसे ही पहाड़ियों
और सूने आकाश झाँकते हैँ?
उन रहस्यमई आँखों में क्या था?
अभी वे आँखें क्या देख रहीं हैँ?
उलझन, तड़पन, बिखलन, वेदना
और
इन सबको ढँकती
बेबसी कि वह चादर,
जो नियति का रूप लिए
हमारे समक्ष खड़ी थी!
ये वही नयन जिनमें,
मैं अपने सुख का प्रतिबिम्ब
देखा करती थी!
उसकी सीमाएं आईने से
कहीं ज़्यादा व्यापक थीं!
मुझे आइना नहीं अच्छा लगता,
जोकि सिर्फ सतही प्रतिबिम्ब
दर्शाता है!
तुम्हारे नयनों में नहीं होती!
ये वही नयन हैं,
जिनमें खुद को मैं देखा करती थीं!
और खुद से संलग्न सारे सपनों को!
इसीलिए शायद मैं अपने सपनों को
मरने नहीं देना चाहती,
क्योंकि वे तुम्हारी आँखों से देखे थे!
तुम्हारी अभिव्यक्ति के लिए,
तुम्हारे अधर भले ही ना हिले हों,
मगर तुम्हारे नेत्र -ज्योति
के पीछे छिपा,
वह अंधकारयुक्त संसार
मेरी दृष्टि -पथ के बाहर नहीं!
उस क्षण होठों की ख़ामोशी में
जो छिप गया था,
वह नयनों की राह बाहर निकल कर
मेरे ह्रदय में प्रवेश कर गया!
तब से लेकर आज तक,
यानि अभी तक,
कभी नहीं मिली वह रातें
जब मैं चैन से सोया करती थीं!
काश!कि तुम भी देख पाते
अपनी उस नयन भंगिमा को
उसमें प्रयुक्त अनेकानेक
भावों के जटिल संगम को
जिनको सुलझाने की चाह में
मैं खुद उलझती चली जा रही हूँ!
प्रकृति के गोद में बहती
नदियों की भांति
रंगीन वादियों के स्वर्गनुमा
आगोश में
पर्वतों के पीछे मनोरम पर्वत शिखरों
और उगते सूर्य के तेज़ के समान
दिव्या भावनाओ
को जागृत करनेवाली
दैवीय शक्तियों
से ऊर्जावान हो
प्रकृति का संरक्षण करते हुए,
प्रकृति के नियमों को धारण कर
आगे बढ़ने का प्रण ले कर
उसके सहयोग और उपयोग से
नये ऊर्जा का निर्माण करें,
अंदुरुनी भी,
और बाहरी भी!
वो आज़ादी जिसके हर आगाज़
हर कदम की आहट,
अंदर तक दिल को प्रसन्नचित करें
और
कोई नया कदम बढ़ाने को प्रेरित भी!
कलमश्री विभा सी तैलंग
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saurabhchoudhary1234@gmail.com | Very good poem. |
1. मेरे कंधों पर है |
मेरे कंधों पर है,
युवाओं के रक्त का बोझ!
आज का सच
भाई मेरे
कब तक झुठलाओगे
पेट की आग को
कब तक बहलाओगे
अंताड़ियों के ऐठन को
क्या तुम्हारे मन में
कोई विरोध नहीं होता?
आखिर कब तक रहोगे
इस कांच के घर में?
अपने पिता और उनके पिता भी
इसी कांच के घर में रहे
बाकी सांस लेने उन्हें
हवा भी मांगनी पड़ी थी
मगर अब नहीं
होगा मुझसे
बेंत बनना,
कि जिधऱ भी झुकाया जाएगा
उधर झूकूंगी
मेरे कंधों पर है
युवाओं के रक्त का बोझ
मेरी आँखों में जल रहा है
प्लाश का वन
रोम रोम में दुखता है
ताज़े सपनों का लाल लहू
एक सवाल फिर मेरे
मन को रौंदाता है
कैसे लहूलुहान हो गए
काँटों के वन में
फूलों के सुहाग?
क्यों बैरन चिट्ठी से फिर रहे हैँ
खाली हाथ लोग?
सोचती हूँ,
बस्ता का बोझ कितना भारी था
पर कितनी हल्की हो गयीं है ज़िन्दगी!
पर मैंने सीख लिया है,
कि अब पेट को पेट
और रोटी कहूँगी
क्योंकि मैंने महसूस किया है
पेट की आग को
देखा है
भूख और रोटी के महायुद्ध को
और इसलिए
मैंने जान लिया
कि भूख फूल से
या कागज़ से नहीं
रोटी से बुझती है!
यही है मेरे भाई,
आज का सच!
कलमश्री विभा सी तैलंग
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saurabhchoudhary1234@gmail.com | Very good poem. |
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