असल में 19 वीं सदी का "उत्थान" "प्रवृत्तिवाद" का ही
उत्थान था.
20वीं सदी इसी का प्रचार-प्रसार थी।
देखो 21वीं सदी किस वाद को जन्म देती है?
My open letters to all!
मेरी खुली चिट्टी आप सब के नाम!!
हिन्दू व मुस्लिम या यूं कहें भारतीय नवोतथान का एक
प्रधान लक्ष्ण अतीत की गहराईयों का था,इतिहास गवाह है की यूरोप के पास जो पूंजी थी,उसमें विज्ञान ही एक ऐसा तत्व था, जो भारत को नवीन लगा और जिसे भारत ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.
बाकी प्रत्येक दिशा में,भारत ने अपने अपने अतीत की पूँजी टटोली और अपने प्राचीन ज्ञान को नवीन करके वह नए मार्ग पर अग्रसर होने लगा. अंग्रेजी भाषा में "revivalism" है,जो दूषित अर्थ देता है.जो भी व्यक्ति आज के सत्य का अनादर करके भूतकाल की मरी हुई बातों को दुहराता है,उसे हम पुनर्जागरणवादी या "rivivalist" कहते हैं,और पुनर्जागरणवादी होना कोई
अच्छा काम नहीं है.
किन्तु, नवोउत्थान में भी अतीत की बातें दुहराई जाती हैं जब नवोतथान का समय आता है,
जातियों के कुछ पुरातन सत्य दुबारा जन्म लेते हैं! यह पुनर्जागरण नहीं,सत्यों का पुनर्जन्म है!
बहुत से सत्य ऐसी हैं, जो मिटना नहीं जानते,जो कुछ दिनों के लिए पृष्ठभूमि में चले जाते हैं, किन्तु, समय पाकर जिन्हें मनुष्य फिर से प्राप्त कर लेता है!भारत में ऐसे सत्य वेदांत के सत्य रहे हैं!
जब जब भारत में नवोतथान हुआ है, तब तब वेदांत की भूमिका मनुष्य के सामने प्रकाशित हो उठी है!वेदांत ने
बुद्ध का साथ दिया,वेदांत ने शंकर को चमकाया,वेदांत के आधार पर कबीर और नानक सत्य सिद्ध हुए और उसी वेदांत की नयी व्याख्या करके रामानुज ने भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया!
जब ईसाईयत और विज्ञान भारत पहुंचने और भारत उनका स्वागत सत्कार की व्यवस्था करनी पढी, तब भारत ने एक बार फिर वेदांत का सहारा लिया!जिस नवोतथान का आरंभ राजा राम मोहन राय, दयानन्द सरस्वती और विवेकानंद सरीखे लोगों ने किया था, और जिसके विचार धारा में हम आज भी तैरते हुए आगे जा रहे हैं,वेदांत उस आंदोलन की रीढ़ है!
नवोतथान का दूसरा प्रधान लक्षण "निवृति " का त्याग था! जब हिन्दू और इस्लाम यूरोप से टकराए तो उन्हें सोचने को मजबूर होना पड़ा की निवृति जीवन की सच्ची राह नहीं है!
लेकिन "प्रवृत्ति" को भारतवासियों ने नया दर्शन समझ कर अपनाया! नहीं, दरअसल श्री विवेकानंदजी और लोकमान्य तिलक ने वेदांत और गीता की ही "नयी व्याख्या" करके य़ह प्रतिपादित किया है कि भारतीय वैदिक धर्म का मूल उपदेश "निवृत्ति" नहीं, "प्रवृत्ति "है! य़ह हिन्दुत्व की बात है,इस्लाम का विश्लेषण हम अलग से करेंगे!
जीवन सत्य है, संसार सपना या मिथ्या नहीं है,वैराग्य जीवन की पराजय को नहीं कहतें हैं तथा कर्माकर्म का विचार ऐसा नहीं होना चाहिए की मनुष्य के इहलौकिक सुखों का ही नाश हो जाए,ये और ऐसे उपदेश इस काल के चिन्तकों के मुख से बार बार सुनाई देते हैं!
असल में 19 वीं सदी का "उत्थान","प्रवृत्तिवाद" का ही अनुपम उत्थान था! अब देखना य़ह है की "21 वीं "सदी का "उत्थान","किस-वाद" को जन्म देता है???
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
|