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Grievances cell



12.  Konark







 16-Feb-2025 07:22 pmComment





11.  Meter replacement application







 16-Feb-2025 07:22 pmComment





10.  Installation & trouble shooting







 16-Feb-2025 07:21 pmComment





9.  Multijet







 16-Feb-2025 07:21 pmComment





8.  Meter







 16-Feb-2025 07:21 pmComment





7.  Closure of current account of Aditi Foundation







 16-Feb-2025 07:20 pmComment





6.  Billing reading & payment history







 16-Feb-2025 07:19 pmComment





5.  Jal Board bill







 16-Feb-2025 07:19 pmComment





4.  Multimeter







 16-Feb-2025 07:18 pmComment





3.  बदलती परिस्थितियां


(हमें महिला आरक्षण क्यों चाहिए,, मेरा नज़रिया!!..)
.
बदलती परिस्थितियां
 ...मैं 'एक दिन ' मनाने में यकीन नहीं करती हूँ , परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है! ...हाँ एक दिन साल भर के कार्यों का लेखा-जोखा बताया जा सकता है बगैर काफ़ी आडम्बर किये .
 
परिवार और समाज में नारियों का स्थान और उनके अन्तरंग और बहिर्रंग व्यक्तित्व की दृष्टी से यदि हम विश्व का इतिहास देखें, तो विभिन् कालों में नारियों की बदलती स्थितियों का हमें सहज ही पता चल जाएगा। हमें ऐसा सुनने को मिलता है की बहुत प्राचीन काल में नारी प्रधान परिवार हुआ करते थे। ऐसे परिवारों से यूक्त समाज मात्र सत्तात्मक समाज कहलाता था। आज भी केरल में और पूर्वोतर राज्यों में ऐसे परिवार मिल जाते हैं। फिर क्रमश: ऐसा युग आया जब परिवार में कार्य शेत्र का स्पष्ट: बंटवारा हो गया। नारियों को घर के समस्त कार्य सौँप दिए गए और पुरूष ने अपना कार्य-शेत्र बाहर चुन लिया। परिणाम यह हुआ की धीरे-धीरे पुरुषों का महत्त्व बढ़ने लगा और स्त्रियाँ सिर्फ़ घर की शोभा मात्र रह गयी। आधिकारों की दृष्टि से नारियों के पिचाद
जाने का प्रधान कारन शायद यही रहा होगा। आज भी हम पाते हैं की जिन् स्त्रियों का कार्य शेत्र सिर्फ़ घर तक सीमित है, वे अपेक्षाकृत परतंत्र है, और जो स्त्रियाँ किसी न किसी रूप में घर से बाहर अपना कार्य शेत्र ढूँढ लेती है, वे कहीं अधिक स्वतंत्र हो जाती हैं अथवा होने की शमता पैदा कर लेती हैं। नारीओं की स्थिति में हेरफेर का यह कारन इसलिए भी उपयुक्त प्रतीत होता है, क्योंकि कोई दूसरा कारन इतना महत्वपूर्ण नज़र नहीं आता। सालों से महिलाओं की बिगड़ती स्थिति और अन्याय से बचाव के लिए तमाम महिला संस्थ्यें सामने आयी हैं पर वे पुरा कार्य नहीं कर पायीं हैं। स्त्री का शारीरिक, मानसिक, और मनोवैज्ञानिक शोषण से बचाव हो, इसके लिए ज़रूरी है की पूरा परिवार अपनी सोच में परिवर्तन करे, या परोख्स रूप से कहें, तो समाज की सोच में ही परिवार्त्न हो। आंकडों के मुताबिक, उत्तेर्प्रदेश महिलाओं के उत्पीडन में सबसे आगे है। नेशनल फॅमिली हैल्थ के हाल के आंकड़े बताते हैं की तकरीबन पचास प्रतिशत पुरूष महिलाओं को उत्पीडित करते है। दहीज के लिए टांग करना, मरना, लिंग भेध्भाव भी वहां ज़्यादा है, पर यह सामान्तया पुरे उत्तर भारत में है। शैक्षिक, आर्थिक, व् सामाजिक विकास में भी उनके साथ भेदभाव ज़ाहिर तौर पर है। प्रतिदिन के उत्पीडन से महिलायें एकदम से नहीं मरती, तिल-तिल कर मरती है, और हर तरह से पंगु बन जाती हैं।
 
आख़िर इस समस्या का कोई निदान है क्या ? क्या महिला सस्थाएं न्यायालयों में महिलाओं को न्याय दिला कर इन समस्याओं का निदान कर सकती है ?
 
मैंने अपने कुछ मित्रों से कुछ सवाल पूछे.उनके जवाब का लब्बो -लुबाव था "इस्त्रियों का आत्मनिर्भेर होना मुख्य वजह है पारिवारिक कलह की । जो दायीत्व समाज ने स्त्री और पुरूष के लिए बाँट दिए गए हैं , उसका निर्वहन न कर के पुरूष और स्त्री दोनों पुरूषओचित हो रहे हैं । वैसे भी , पुरूष का स्त्रियन होना सम्भव नहीं ।"
 
मुझे लगा जब तक पुरूष अहंकार बीच में आता रहेगा , परिवारों में बिखराव आता रहेगा एक और महिला मनोव्य्ज्ञानिक रूप से पंगु होती रहेगी ।
 
आज ज़रूरत है ऐसी संस्थाओं की जो स्त्री ही नही , पुरुषों के मन की व्यथा भी सुनें और उन्हें परामर्श दे की किस तरह घर में महिला को स्नेह व् इज्ज़त देते हुए मददगार पति , भाई , पिता की भूमिका निभाएं । साथ ही , इस पीढी की परवरिश ऐसे ढंग से हो जहाँ बेटे -बेटियों में भेदभाव न हो और दोनों में समान मानसिकता डालते हुए घर -बाहर के कार्य सिखाये जायें । संभवत: तभी स्थितियों में बदलाव होगा और देश का भविष्य उज्जवल होगा , और यही हमारा समाज के लिए योगदान होगा ।
 
 
डॉ कलमश्री विभा सी तैलंग



 11-Feb-2025 10:45 amComment





2.  Aankhon ki lali


आंखों की लाली 

 

आंखों की लाली,

नशा भी हो सकती है

नशा नहीं होती हमेशा 

आंखों की लालिमा!

मुहावरा तो सुना होगा आपने?

आंखें तरेरना,आंखें लाल करना! 

ऐसा करना,गुस्से में पागल होना ही

           नहीं होता हमेशा,

        कन्जएक्तीवय्तिस की

        बीमारी भी हो सकती है!

    आंखों में खून का थाक्क जमना

             किसी नस का फटना 

               रक़्त्चाप के बढ़ने से, 

          रक़्तश्राव होने का संकेत भी

                     हो सकता है।

               बात इतनी सी ही नहीं,

         आंखोँ में आंखें डालकर तकना 

          जैसे रोमांस नहीं होता हमेशा!

             स्वाभिमान से,अभिमान से

    हिम्मत से,ज़ुर्रत से,आत्मविश्वास से

             बातें करना भी कहते हें इसे!

               

               जिसे अंग्रेज़ी में हम

             बॉडी लैंग्वेज कहते हें

        लेकिन डॉक्टर इसे अंधेपन 

       और रातौंधी जैसी आंखोँ की

     बीमारी के लक्षण भी बताते हें।

              साथ ही साथ वो हमें 

           नशा पीड़ितों के हरक़तों

           की झलक भी समझाते हैं।

     आओ आंखों में धूल झोंके बिना

             आंखों की लाली की

              गहराइयों को मापे,

        और नशा करने के लत के 

                  आदी होने के 

        परिणामों के जानकार बने,

    सतर्कता बरतएं और सजग रहें।

          आओ चलो आप सबको 

      दिखाय झांकी नशीली जहां की,

          रंगीन दिवास्वप्न सी लगती

       ज़हरीली खूनी पगलिस्तान की!

               नशे के दुनिया की,

          नशा के लत में नशे के धुन में,

              नशीली होती ज़िन्दगियाँ 

         जवाँ युवा वयस्क वृद्ध ही नहीं,

                 बच्चों की-रक़्तों के,

     ज़हरीली होते जाने की दास्ताँ की।

            यह दास्ताँगोई वास्तविकता है

                       इस नर्क़   की।

जिसे वो स्वर्ग समझ गवां रहे,

धन उम्र जीवन और खुशियोँ को

जीना छोड़ दिया घर परिवार में

घरवालों,मित्रों और समाज के लिए ।

यह जूनून मौकापरस्ती यामहत्वाकांक्षा 

     कुछ बड़ा कर जाने,कर दीखाने,

          उन्नति धन यश पुरस्स्कार 

                  पाने का नहीं।

या फिर अपना साम्राज्य बढाने का,

          युध्द करने और उसे 

            रोकने का भी नहीं।

               यह है,अपराध करने 

          और उसका सिरमौर बनने का।

               नशे का सौदागर बन 

              नशा बाँट नशाखोरी का 

                  धन्धा बढाने का। 

    नशे के पिनक में पड़े रहनेवालों को

  भिखारी बना कर, बच्चों को

चुराकर ,भिखरियोँ की सेना बनाने का,

उन्हें तड़ीपार कर ,

अन्तरराष्ट्रीय शृँखला

 और सत्ता बनाकर

 अक्षम होते युवाओं 

को भावनात्मक मन में,

अपराधवृती को बढाने के लिए 

उनमें आक्रामकता बढाने के लिए। 

नशे की लत लगाते हैं।

इसे बेचते - बिकवाते है।

खेल के मैदानों में,

खानों में,खदानों में,

खेत खलिहानोँ में,

राजनैतिक अखाड़ों में,

दंगल के धोबी-पछाड़ में,

बॉडी बिल्डिंग में,

कंप्यूटर-वीडियो गेम में,

नशाखोरी की ज़रुरत

समझाते हैं,शर्ते लगवाते हें,

लत लगने पर माल देते,बांटवाते है,

बीमार पढ़ने पर डॉक्टर 

बिमारियों की लम्बी लिस्ट बताकर

डी- ऐडिक्शन@ नशामुक्ति कैम्प भिजवाते है,वहां इलाज के लिए 

ड्रग्स थोड़ा सा देंगे।

रोग का इलाज जिससे रोग हुआ,

उसी से करेंगे।

पुलिस ने पकड़ा तो,

हमारे देश में एन डी पी एस ऐक्ट

1985 ज़रा सख्त है,

कोर्ट कचहरी मेँ,

मानवाधिकार वाले वकील को बुलाना,

वो जिरह करेंगे,

यूएन मतलब संयुक्त राष्ट्र के क़ानून और कुछ अन्य देशों में,

कैसे इसके उदार क़ानून बनाये गए हें,

बतलायेंगे,आपके पक्ष में दलील देंगे,

कहेंगे,लत लग जाए तो दवा के रूप में

इसका उपयोग करवाया गया है।

कहानी यहीं नहीं रूकती,

6 महिने की जेल,

10,000/-का जुर्माना लगे 

या एक साल की जेल 

और 20,000/-जुर्माना!

पूरा चक्र या दुशचक्र है,

एक गठजोड़ है,इन धंधेबाजों का,

राजनीति से लेकर

उपभोकताओं तक से,

पैसे-ऊपहार खिलाते और खाते हें।

नशे का कारोबार फैलाने में सहयोग पाते हैं,बस जागरुकता चाहिए कि 

कोई आपका इस्तेमाल ना करे।

शराब,ड्रग्स,सिगरेट,बीड़ी,जर्दा,

तम्बाकू,गुटका,पानमसाला,

सब सेहत और जेब के दुश्मन 

अपनी जान स्वयं बचाएंगे,

तभी अस्पताल पुलिस,थाने,

कोर्ट-कचहरी से बच पाएँगे।

जहाँ गलत होता देखे,उसे रोके।

पुलिस या सम्बंधित संस्था को खबर देंगे,करवाई होगी,तभी वाहवाही पाएगें।

समाज परिवारों के व नागरिकों के समूह से बनता है।

एक एक बूंद से घड़ा भरता है,

एक छेद से जहाज़ डूबता है,

अनेकों कहावतें हें,पर एकल 

और सामुहिक प्रयास हो।

समाजसुधार का दायित्व किसका है

यह समझ जायेंगे।

*कलमश्री विभा सी तैलंग *

31मई 2024




 01-Jun-2024 12:11 pmComment





1.  Aise the humare Sam Bahadur Maneckshaw


जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी उस समय फील्ड मार्शल  #मानेकशॉ आर्मी चीफ थे, इंदिरा गाँधी ने उन्हें पाकिस्तान पर  चढ़ाई करने का आदेश दिया...  

 

इसके जवाब में जनरल मानेकशॉ ने कहा सैनिक तैयार हैे, पर उचित समय पर युद्ध करेंगे।  

लेकिन इंदिरा गाँधी ने तुरंत चढ़ाई  

करने का आदेश दिया...  

 

परंतु, उचित समय पर ही सेना ने चढ़ाई करके सिर्फ 13 दिनों में पूर्वी पाकिस्तान को बांगलादेश बना दिया...  

उचित समय आने पर श्री मानेक्शा इंदिरा गाँधी से बोले..."मै आपके राजकाज में दखल नही देता.. वैसे ही आप भी सैन्य कार्यवाही में दखल मत दीजिये"...  

 

इस के पश्चात 1971 के बाद से जनरल माणेकशा जी का वेतन बंद कर दिया गया...  

परंतु, माँ भारती के इस सपूत ने कभी भी अपने वेतन की मांग नही की...  

 

25 साल बाद जब वो हॉस्पिटल में थे तब एक दिन श्री  ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, राष्ट्रपति पद पर रहते उनसे मिलने गए...  

 

उस वक्त बातचीत के दौरान ये बात राष्ट्रपति श्री कलाम साहब को पता चली कि जिस व्यक्ति ने अपने देश के लिए 5-5  युद्ध लडे, उस योद्धा को 1971 के बाद से वेतन ही नही दिया गया... तब उन्होंने तत्काल कार्यवाही करके उनकी शेष राशि का भुगतान लगभग 1.3 करोड़ रुपये का चेक उनको भिजवाया... ऐसे वीर योद्धा को भी इस महान गाँधी परिवार ने नही छोड़ा... अत्यन्त ही शर्मनाक बात है!!  

 

जय हिंद जय भारत




 01-Jun-2024 12:48 pmComment













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