13 जनवरी से 26 फरवरी तक
वाचडॉग -डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
महाकुंभ का अर्थ शास्त्र
और शोभा की रसोई
मेरी पिछले जन्म में महाकुम्भ में ही बिछुड़ी सहेली शोभा
अचानक चहकती सी चिड़िया की तरह प्रकट होकर 3 और दोस्तों के साथ हमारी अम्मा की रसोई का..लाइव शो करती हुई अपनी यात्रा वृतांत को सोशलमीडिया में डाल कर हमें निहाल कर रही है!
उसकी लगाई वीडियो-तस्वीरें हमारी ज्ञानवृद्धि के लिए लोकेशन मैप तो है ही, सुधीर तैलंग ज़ी की तरह स्केच बुक पकड़ कैरीकैचर स्केच कार्टून्स बनाते तो दृश्य और मनोरम व जीवंत हो जाता!..गाड़ी से...हम दिल्ली से जयपुर होते हुए बीकानेर जाते थे तो आलम कुछ ऐसा ही हुआ करता था!
हमारी खिंची तस्वीरें और कार्टून,स्केच,कैरीकेचर...की आकृतियां, अर्थव्यवस्था को उन्नतिशील बनाने में नागिन के फन की तरह फैल रही सड़कों के विस्तार के जाल को सुलझाती है! गड्ढोंवाली टूटी फूटी सड़कें, जो हर दिन ना जाने कितनों को डसती,अपने लपेटे में ले,उनकी जान को लीलती है! टूटी फूटी स्ट्रीट लाइटवाली हाईवे की सड़कें, जो कई बार लाइट विहीन भी होती हैं! ना जाने कितने सड़क हादसों की वज़ह भी है और गवाह भी!
ध्यान आया बचपन की वो बिहार की सड़कें जिसपर
गाड़ी गुज़रती तो झूले के हिचकोले के आनंद जो टाउनशिप स्पीड ब्रेकर दिलाया करते थे,वहीं मोकामा गंगाघाट को जानेवालीं सड़कें, आंतों को पलटने में-दस्त उल्टी माइग्रेन दिलाने में एक्सपैरी दवाइयों के ओवरडोज सा काम करते,ऐसे की "बी.पी.लो" हो जाए!
हाँ तो! हमारी सखी अम्मा की रसोई वाली शोभा, वही जो पिछले जन्म में महाकुम्भ में बिछुड़ी थी, तमिलनाडु से चली,प्रयागराज में उतरी और आज वापिस अपने गृहप्रदेश पहुंची! वो भी बिल्कुल स्वस्थ व सुरक्षित ,उस नायाब रत्न की तरह जिसे,कितना भी कीचड़ के पानी में डाल कर छोड दो,उसका महत्व कम नहीं होता! ठीक समुद्रमंथन से निकले नवरत्नों की तरह!
कीचड़ का पानी,वही जिसमें कमल खिलता है,और खिला भी 5 फ़रवरी को दिल्ली में!..तभी ना यमुना आरती,यमुना की सफाई की गुहार,चुहल पहल,घोषणाएं और लाइट कैमरा एक्शन सभी शपथ के पहले ही शुरू हो गया!....है ना जी!
पर संगम में गंदे नाले सा पानी ,जिसमें मल-मूत्र का भरमार है, इसमें नहाने से चर्मरोग और आचमन करने से आंत्रशोध हो सकता है, य़ह चेतावनी...मैं नहीं,वो कह रहे हैं- वो पानी जांचवाले सरकारी वैज्ञानिक और उनकी रिपोर्ट कह रही है!
वैसे मनुष्यजनित हादसे यानी भगदड़ में कई मारे गए! कुछ घायल भी हुए! बीमारियों से वहां किसी के मरने या महामारी फैलने जैसी खबरें तो अब तक आयी नहीं! हो सकता है, सरकारी फाइलों में दबा दी गई हो!
तो हमारे पाठकों को बताऊँ,जो उन्हें पहले से पता भी हो...शायद, कि कभी समुद्र मंथन हुआ था क्षीरसागर में, ठीक वैसे ही जैसे यमुना के तट पर विपक्ष आप पार्टी मंथन कर रही है अपने हार की वज़ह जानकर -दोष किस पर डालें! वहीं बीजेपी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के लिए मंथन कर रही है, ताकि भविष्य में हार का ठीकरा उसी पर डालेंगे! इस अमृतमंथन में कमल पर बैठी लक्ष्मीजी निकलीं,नवरत्न,नवग्रह,और भी बहुत कुछ निकला ,पर जो अमृतकलश निकला उसे, यानी उस कुम्भ या घड़े को इंद्र पुत्र जयंत राक्षसों से बचा कर ले भागा! उसके पीछे राक्षस भागे,उसे औऱ अमृत कलश को बचाने कुछ देव पुत्र भागे! इस दौरान भागा-भागी में 4 स्थानों पर अमृत के कुछ बूंद छलक गए...हरिद्वार,उज्जैन नासिक और प्रयागराज में!
आज इन सभी 4 जगहों पर कुम्भ का मेला लगता है!
अब जयंत तो हर काल में मिलते हैं, जो अमृत मंथन में लगे राक्षसों और देवों दोनों की मेहनत को हड़प लें!
शोभा की तस्वीरों में विकसित भारत की तस्वीरें हैं,जिसमें लाल और हरी मिर्च की खेती है,पेड़ पौधे हरियाली हैं और साफ सुथरी सड़कें,वीरान पर, सुरक्षित बस स्टॉप और दूसरे स्थान, जहाँ उन्होंने अपना रसोई बनाया,बिल्कुल वनवासी स्त्रियों की तरह,जैसे हमने स्काउट-गाइड के रूप में चंडीगढ़ के जंगलों में चाय बनाई थी! यहाँ मैं "सीता की रसोई" की बात नहीं कर रही! अपनी गाड़ी में चलती फिरती रसोईघर लिए वे 4 लोग साथ-साथ तीर्थ यात्रा कर रहे थे! चारों धर्मशालाओं में रुके! पंडित-पुजारियों,महन्त लोगों से आशीर्वाद ली,उनके पत्नी बच्चों के साथ गपशप करते, नाचते-गाते,सड़कों पर गुनगुनाते-ठुमकते,उनकी शागिर्दगी भी की! उनके घरों में ठहरे! उनके लिए पानी भी भरे!उनके बाग में लगी तार के जालियों में अटकी फली की सब्जियां तुड़वा कर- कटोरे भर मांग कर,बौद्ध भिक्षुओं की तरह सब्ज़ी काटकर बनाई! और तो और,संतरे से भरे ट्रकवाले को रोक कर, दबंगों की भांति "रंगदारी टैक्स" में, अपने हाथों में संतरे लेकर , आँचल में और थैलों में मुफ्त में भर कर -संतरे वसूले!
रास्ते में वे कई प्रदेशों से गुज़रते हुए वहाँ की झांकियां दिखाते गए! हमारी यात्रा सीमित थी उनके नजरिए और तस्वीरों तक!हम वही देख रहे थे जो उन्होंने हमें दिखाया!
उसके साथ फुट नोट लिख कर जानकारियां दीं! वे 4 लोगों ने रुक रुक कर वहां के मंदिरों में अपनी आस्था की अभिव्यक्ति की! पूजा अर्चना और तस्वीरों के खींचने के साथ,उस पल को यादगार बनाया! हमने उन तस्वीरों के माध्यम से, उसकी आंखों से,उसी के साथ भ्रमण किया! तस्वीरें, वीडियो बनाने वाले की झलक कभी-कभी दिखी!तीनों सहेलियां ही छाई रहीं! "थ्री मस्कीटीर्स" की तरह हमारी Cinderella's. सीनड्रिलाऔ ने पोज देकर मॉडल बन तस्वीरें खिंचवाने का शौक व मन का भड़ास भी निकाल लिया!
तो य़ह है कुम्भ का अर्थशास्त्र! संक्षिप्त में कहें तो य़ह मेला एक मौका है व्यापार का, जहाँ हर व्यवस्था सरकारी तंत्र संभालती है, उनकी अपनी मशीनरी और प्रोटोकोल है!सम्भवत सबने अपना दायित्व सही से ही निभाया होगा!अभी अंतिम 4 दिन है! शिवरात्रि के बाद लेखा-जोखा आएगा,क्यों भगदड़ मची और कहाँ और सुचारू व्यवस्था होनी थी!
पर मितव्ययी होकर साफ़ सुथरे अंदाज में देश भ्रमण और तीर्थयात्रा कर ,सुरक्षित लौट कर घर आना! इतने कम खर्च में अपने इच्छाओं को जमीनी हक़ीक़त बनाना, य़ह भी खास बात है!
वर्ना तीर्थों में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी विधि विधान बिकते हैं!पंडा,मौलवियों,पंडितों,मुल्लाओं के हाथ हर कार्यों,हर व्यवस्थाओं के हल के लिए उपाय है! बस आपके पास धन दान की क्षमता होनी चाहिए! घूस खाना- खिलाना मुश्किल नहीं! फिर चाहे वो रहने ठहरने की व्यवस्था हो, गाड़ी,वाहन,खरीदारी की व्यवस्था हो या पूजा पाठ की,VIP हों या ना हों, पैसा बोलता है!
जितना बड़ा अवसर हो, जितना बड़ा मेला...बस पैसों का ही होता है खेला!
सुना ना उस नीम के दातुन बेचने वाले का किस्सा!अपनी प्रेमिका की सलाह मानकर, महाकुंभ में ही वेलेंटाइन डे मनाने की ठानी!13 जनवरी से 26 फरवरी तक वहीं रह कर पहली बार नीम का दतमन बेचने बैठा और आज अभी ही करोड़पति है,या ना मानो तो, लखपति हुआ होगा, खैर! टैक्स तो उसे ही भरना है!
अब बताओ मार्केटिंग भी एक कला है या नहीं! बस क्या बेचना है, इसकी सोच और हिम्मत होनी चाहिए!
पर मेरी पिछले जन्म में कुम्भ मेला में बिछुड़ी मेरी मित्र शोभा,जोकि पेशे से शिक्षक रही है,उसने य़ह कर के बताया! आप मध्यम वर्ग के हैं,या उच्चवर्ग के,बचत के साथ ,मस्ती के साथ ,नैसर्गिक- प्राकृतिक मौसम का मज़ा अपनी गाड़ी में लेते हुए! अपनी सुविधा से, रेल्वे के भीड़ भाड़ से बचते हुए,साफ सुथरी भोजन करते हुए, तीर्थयात्रा या घुमक्कड़ी कर सकते हैं!
महाकुंभ के अर्थ शास्त्र को समझ सकते हैं!
डॉ कलम श्री विभा सी तैलंग
|